तरह-तरह
के हथकंडे अपनाकर अपने प्रोडक्शन हाउस की फिल्म ‘पैडमैन’ के प्रमोशन में जोरशोर से
जुटी ट्विंकल खन्ना से जब यह सवाल पूछा गया कि मासिक धर्म के दौरान औरतों को
छुट्टी मिलनी चाहिए या नहीं तो उनका जवाब था कि छुट्टी के लिए मासिक धर्म का एक
बहाने की तरह इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। अपने इस नज़रिए को रेडिकल फेमिनिस्ट नज़रिया
साबित करने के लिए उन्होंने यह तर्क दिया कि मासिक धर्म के दौरान छुट्टी लेने से महिलाओं
को पुरुषों की तुलना में कमज़ोर समझने की धारणा को बल मिलेगा। ट्विंकल ने आगे यह
कहा कि जिन महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान अधिक दर्द होता है तो उन्हें उसी तरह
से छुट्टी लेनी चाहिए जैसे कि पेट दर्द या अन्य किसी बीमारी के समय ली जाती है।
ट्विंकल
के इस नज़रिए से यह बात साफ़ हो जाती है कि मासिक धर्म और इससे जुड़ी समस्यायों को
लेकर वे कितनी कम संवेदनशीलता के साथ विचार कर पाती हैं और यह भी कि ‘पैडमैन’ जैसी
फिल्म का प्रमोशन सिर्फ़ और सिर्फ व्यावसायिक मामला है। जबकि इसे प्रचारित इस तरह
किया जा रहा है कि यह फिल्म लोगों को मासिक धर्म और उससे जुड़ी समस्यायों के प्रति
जागरूक और संवेदनशील बनायेगी। मासिक धर्म के शुरूआती एक से दो दिन तक अमूमन महिलाओं
को दर्द का सामना करना पड़ता है और जिन महिलाओं को इन दिनों दर्द की समस्या नहीं
होती है, उनके लिए भी सामान्य दिनों की तरह सहज रह पाना कठिन होता है।
ट्विंकल
को यह सुविधा है कि उन्हें सामान्य कामकाजी महिलाओं की तरह कई घंटों तक ऑफिस में
काम नहीं करना पड़ता और घर से ऑफिस तक पहुँचने और लौटने के लिए लोकल ट्रेनों और
बसों में धक्के नहीं खाने पड़ते, शायद इसीलिए वे आम कामकाजी महिलाओं की चुनौतियों
को समझने में असमर्थ हैं। ट्विंकल की भाषा सेनेटरी नैपकिन के उसी विज्ञापन की तरह
है, जिसमें यह प्रचारित किया जाता है कि सेनेटरी नैपकिन का उपयोग कर सामान्य दिनों
की तरह सहज और उन्मुक्त रहा जा सकता है। यह बात सही है कि सेनेटरी नैपकिन ने मासिक
धर्म के दौरान महिलाओं की असुविधाओं को कम किया है, लेकिन यह महिलाओं को आम दिनों
की तरह सहज बना देता है यह धारणा पूरी तरह बेबुनियाद और भ्रामक है। पीरियड्स के
दौरान एक ही दिन में कई-कई बार सेनेटरी नैपकिन बदलने पड़ते हैं और ये अभी इतने भी स्किन
फ्रेंडली और परफेक्ट नहीं हो सके हैं कि अधिक चलने-फिरने और उठने-बैठने के बावजूद
यह कष्टप्रद और असहज करने वाले न हों।
मासिक
धर्म के दिनों की असुविधाओं को जबतक वास्तविक समस्या के रूप में नहीं स्वीकार किया
जायेगा, तब तक इस दौरान मांगी गयी छुट्टी खैरात लग सकती है, लेकिन हमें यह समझना
होगा कि इस तरह की छुट्टी दया और सहानुभूति का विषय नहीं बल्कि कामकाजी महिलाओं का
हक़ है। जहाँ तक इस छुट्टी के कारण औरतों को पुरुषों से कमज़ोर मान लिए जाने की बात है,
तो यह तर्क इसलिए भी बेबुनियाद है कि इस स्वाभाविक जैविक प्रक्रिया और समस्याओं से
स्त्रियों को गुज़रना पड़ता है न कि पुरुषों को! ठीक उसी तरह जैसे कि गर्भावस्था से
स्त्रियों को गुजरना पड़ता है न कि पुरुषों को। दुनियाभर में गर्भावस्था के दौरान
और बाद में मातृत्वावकाश के लिए अधिक से अधिक दिनों की मांग इसी आधार पर की जा रही
है कि यह उनका हक़ है। ट्विंकल के तर्क के हिसाब से मातृत्वावकाश की मांग भी औरतों
को पुरुषों की तुलना में कमज़ोर साबित करने वाली मानी जाएगी।
पुरुषों
से अलग कुछ जैविक प्रक्रियायों के कारण औरतों के लिए जो चुनौतियां बढ़ जाती हैं, उन
चुनौतियों की स्वीकृति और उनसे जूझने के लिए अतिरिक्त सुविधा की मांग औरतों को
कमतर साबित करने वाली होगी, यह सोच ही अपने आप में हीनताबोध से संचालित है। औरतों
का मसिक धर्म और औरतों का गर्भधारण वास्तव में प्रकृति के द्वारा मानव समुदाय की
निरंतरता के लिए औरतों को दिया गया अतिरिक्त उत्तरदायित्व है। इसलिए इस दौरान कुछ अतिरिक्त
सुविधाओं की मांग पूरी तरह जायज़ और ज़रूरी है। सच यह है कि महिलाओं ने अपनी इस
स्थिति का फायदा उठाने के बजाय सिर्फ न्यूनतम और बेहद ज़रूरी सुविधाएँ ही चाही हैं
और इसके लिए भी उन्हें लगातार जूझना पड़ रहा है ।
7 फरवरी 2018 को YKA (यूथ की आवाज़) पर भी प्रकाशित
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