हमारी
यूनिवर्सिटी (UOH) के ठीक पीछे गोपनपल्ली नाम का एक गाँव
है, जहाँ लक्ष्मी नारायण मंदिर के पास हर साल ‘उगादि’ का मेला लगता है। ‘उगादि’
मतलब युग की शुरुआत का दिन, यानि सृष्टि के
आरम्भ का दिन, जो विक्रम संवत कैलेंडर का पहला दिन भी होता
है।
मुझे
इस मेले का इंतज़ार रहता है। इस मेले में मुझे सबसे अच्छा बलून पर निशाना लगाना
लगता है,
लेकिन इस बार निशानेबाजी की दुकानें गायब थीं। इस मेले में तरह-तरह
के झूले भी लगा करते थे, लेकिन इस बार आसपास चल रहे कुछ
कंस्ट्रक्शन वर्क की वजह से उन्हें भी परमिशन नहीं मिली। इसके अलावा इस मेले की एक
और चीज़ मुझे पसंद है, वह है रिंग्स और बॉल फैंक कर सामान
जीतना। उसमें मैं एक-आध सामान तो हर बार जीत ही लेती हूँ, हालांकि
वो सामान किसी काम का नहीं होता फिर भी उस जीत का अपना मज़ा है। अफ़सोस इस बार मेले
में वैसे स्टॉल्स भी नहीं थे। यानि मेरे लिए उत्साहजनक कुछ भी नहीं था! लेकिन इन
सब के बावजूद मेले में कई दुकाने थीं और किसी और में हो न हो मेला देखने आये बच्चों
में वही पुराना उत्साह था।
No comments:
Post a Comment