बीते
शुक्रवार की शाम हैदराबाद विश्वविद्यालय में एक खौफनाक घटना घटी। परिसर के भीतर एक
छात्रा के साथ चार अज्ञात लोगों ने मिलकर बलात्कार करने की कोशिश की। उस वक्त लड़की
के साथ उसका एक दोस्त भी था और किसी तरह वे दोनों वहां से बचकर भाग पाने में
कामयाब हो सके| मारपीट और हाथापाई से दोनों को गंभीर चोटें आयीं। इस घटना की एफआईआर
नजदीकी थाने में दर्ज करायी गयी है, लेकिन अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हो सकी है। ऐसा
माना जा रहा है कि ये चारों ही लोग कैंपस के बाहर के लोग थे, जो कैंपस में अनिधिकृत
तरीके से घुसे थे। उन लोगों ने कैंपस में दाखिल होने के लिए और फिर भागने के लिए
संभवत: उन रास्तों का इस्तेमाल किया, जो सुरक्षा कर्मियों की निगरानी में नहीं हैं
और पक्की चारदीवारी की बजाय प्राकृतिक अवरोधों (जैसे बड़े पत्थर और घने जंगल आदि) पर
निर्भर हैं।
इस
घटना से यह साफ़ हो गया है कि कैंपस की सुरक्षा व्यवस्था बहुत ही लचर है और उसमें
खतरनाक सेंधमारी की जा सकती है। साथ ही यह कि कैंपस के छात्र-छात्राएं भारी
असुरक्षा खतरे का सामना कर रहे हैं। हैदराबाद विश्वविद्यालय का परिसर लगभग 2300
एकड़ में फैला हुआ है और इसमें आने-जाने वाले लोगों की निगरानी के लिए सिर्फ निर्धारित
प्रवेश द्वारों पर सुरक्षाकर्मियों को तैनात कर निश्चिंत नहीं रहा जा सकता है। पहली
ज़रूरत तो यह है कि उन हिस्सों को पक्की मजबूत और ऊँची दीवारों से घेरा जाये जिन
हिस्सों को प्राकृतिक अवरोधों पर निर्भर रहते हुए घेराव में शामिल नहीं किया गया
है। मौजूदा चारदीवारों को भी अधिक सुरक्षा उपायों से लैस किये जाने की ज़रुरत है। इसके
अलावा उन जगहों पर जहाँ परिसर की सीमाएँ खत्म होती हैं और जहाँ से सुरक्षा में सेंधमारी
की अधिक आशंका है, वहाँ-वहाँ निगरानी के लिए सुरक्षा पोस्ट स्थापित किये जाएँ और
सीसीटीवी कैमरे लगाये जायें।
कैंपस
असुरक्षा पर इसलिए लगातार बात करना और ध्यान खींचना ज़रूरी होता है, ताकि इसे अधिक
से अधिक सुरक्षित रखने के लिए एक दबाव बनाया जा सके। हैदराबाद विश्वविद्यालय का
परिसर अपेक्षाकृत सुरक्षित परिसर माना जाता रहा है, लेकिन इस घटना से यह बात स्पष्ट
हो जानी चाहिए कि कभी-कभी जो कैंपस सुरक्षित दिखता है उसका कुछ श्रेय उपद्रवियों और
अपराधियों की थोड़ी-बहुत भलमनसाहत को भी जाता है। लेकिन जब इस तरह के तत्व अपने
इरादों को अंजाम देने के लिए सक्रिय होते हैं तो सुरक्षित होने का सारा भ्रम तोड़
कर रख देते हैं, इसलिए सुरक्षा व्यवस्था की लगातार समीक्षा किये जाने की ज़रूरत
होती है।
कैंपस
के भीतर इससे पहले भी कभी-कभी बाहरी तत्वों के द्वारा उपद्रव और छेड़खानी की घटनाएँ
सामने आती रही हैं। दो-ढाई साल पहले मेरी एक दोस्त के साथ एक ऐसी ही घटना घटी थी,
जब वो कैंपस के एक सुदूर हिस्से में दोपहर के समय बाइक से अपने दोस्त के साथ घूमने
गयी हुई थी। कार में सवार चार-पाँच लोगों ने उनका न सिर्फ बहुत देर तक पीछा किया,
बल्कि लगातार फब्तियाँ कसते रहे और हाथ से छूने की भी कोशिश कई बार की। समय रहते मेरी
दोस्त और उसके साथी ने एक सुरक्षा पोस्ट पर जाकर इस बात की शिकायत कर दी और
सुरक्षाकर्मियों के तुरंत सक्रिय हो जाने के कारण वे लोग पकड़ लिए गये थे। लेकिन हमेशा
ऐसे परिणाम आयें ये ज़रूरी नहीं। ये कार सवार कैंपस के ही किसी गेट से दाखिल हुए थे
और उनके बाहर निकलने का भी रास्ता किसी न किसी गेट से ही होता इसलिए भी उन्हें
पकड़ने में आसानी हुई, लेकिन जो घटना बीते शुक्रवार को हुई है वहाँ सुरक्षाकर्मियों
की पहुँच कठिन थी।
इसे
केवल संयोग ही कहा जा सकता है कि शुक्रवार की शाम को वह छात्रा अपने साथी के साथ
यौन हमले से बचकर भाग पाने में कामयाब हो सकी। इस घटना से तुरंत सबक लिए जाने की ज़रुरत
है नहीं तो किसी भारी अनहोनी की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता! यह भी ज़रूरी है
कि आसपास के इलाकों में सघन पूछताछ की जाए। उपलब्ध सीसीटीवी फुटेज खंगाले जाएँ और
जो भी दोषी हैं, उन्हें चिन्हित कर उनकी गिरफ्तारी सुनिश्चित की जाये। जो कुछ भी
हुआ वह हैदराबाद विश्वविद्यालय प्रशासन के लिए चिंता ही नहीं शर्म का विषय भी है।
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