पाठ्यक्रम
के एक विषय के रूप में विज्ञान भले ही अक्सर सर से ऊपर गया हो और अक्सर एक्ज़ाम
में इसने रूलाया हो, लेकिन बावजूद इसके इस विषय के
प्रति एक आकर्षण रहा है। न्यूटन का गिरते हुए सेब को देखकर 'लॉ
ऑफ ग्रेविटी' का सिद्धांत प्रतिपादित करना हो, या डार्विन के 'बायलॉजिकल इवॉल्यूशन' का सिद्धांत हो या आइंस्टीन का 'थियरी ऑफ
रिलेटिविटी! इस तरह के सिद्धातों ने दुनिया के विकास में लोगों की सोच को सही दिशा
देने में अहम भूमिका निभाई है।
स्टीफन
हॉकिंग एक ऐसे ही भौतिकविद रहे हैं, जिन्होंने
ब्रहाण्ड को समझने में हमारी खासी मदद की है और इसकी उलझी हुई गुत्थी के कई सिरों
को सुलझाने का ताउम्र प्रयास करते रहे हैं।
हॉकिंग
दुनियाभर के लिए इसलिए भी प्रेरणास्रोत रहे हैं कि अपनी बहुत अधिक शारीरिक चुनौतियों
के बावजूद उन्होंने वो सब कर दिखाया जो शारीरिक रूप से सक्षम वैज्ञानिकों के लिए
भी आदर्श है। 21 साल की उम्र में उन्हें मोटर न्यूरॉन
बीमारी ने जकड़ लिया। इसके बाद धीरे-धीरे उनके शरीर के अधिकांश हिस्सों ने काम
करना बंद कर दिया था। इस भयंकर चुनौती के बावजूद वे विज्ञान की उन्नति और मनुष्य
की बेहतरी के लिए काम करते रहे। उनका व्यक्तित्व हर किसी के लिए आकर्षण और आश्चर्य
का विषय रहा है।
वे
कहा करते थे कि मैं मौत से नहीं डरता लेकिन मुझे मरने की कोई जल्दी नहीं है। मुझे
अभी बहुत काम करना है। इसी जिजीविषा के सहारे वे मोटर न्यूराॅन जैसी जानलेवा
बीमारी को दशकों तक मात देते रहे। स्टीफन हाॅकिग की किताब 'द ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम' मैंने नहीं पढ़ी है,
लेकिन कहा जाता है कि इसमें बिगबैंग थियरी और ब्लैक होल के सिद्धांत
को इतनी सरलता से समझाया है कि यह दुनिया में सर्वाधिक बिकने वाली लोकप्रिय
किताबों में शुमार है।
76 साल की उम्र में आज उन्होंने इस दुनिया को अलविदा भले ही कह दिया हो,
लेकिन अपने योगदान के माध्यम से वे हमेशा मौजूद रहेंगे। उन्हें
श्रद्धांजलि।
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