मेरे पापा को हमेशा से शौक रहा कि वे खेती करें किसान बने, लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों और आर्थिक रूप से कमज़ोर और लगभग भूमिहीन पृष्ठभूमि से होने के कारण वे कभी अपने इस सपने को साकार नहीं कर सके। बहुत छोटी सी उम्र से ही उन्हें घर-परिवार की जिम्मेदारियों की वजह से पढ़ाई छोड़ बहुत मेहनत वाले छोटे-मोटे काम-धंधे में घुस जाना पड़ा लेकिन इसके बावजूद वे हमेशा एक खुशमिजाज़ और जिंदादिल इंसान बने रहे और अपनी मेहनत और लगन के बल पर लगातार उन्नति करते रहे।
पापा बहुत अधिक पढ़-लिख नहीं सके लेकिन कोई उन्हें देखकर और उनसे बात करके यह नहीं समझ सकता कि वे कम पढ़े-लिखे हैं। वे हम लोगों की पढ़ाई-लिखाई तक की अच्छी खासी समीक्षा कर देते हैं और कड़ी पूछताछ कर हर चीज़ की कमजोरियाँ और खूबियाँ भी गिना पाने में सक्षम हैं। जीवन और समाज के गहरे अनुभव और व्यक्तियों के चरित्र की उन्हें गहरी पकड़ है।
आजकल वे अपने चिर लंबित सपने को पूरा कर रहे हैं। खेती कर रहे हैं। ब्रज के इलाके में कुछ खेत उन्होंने किराए पर लिये हैं। इन दिनों उनका उत्साह देखने लायक है। दिन भर मजदूरों के साथ खेतों में खुद भी जुटे रहते हैं। उनके जोश और उत्साह के आगे तो हम पानी भरते हैं! आज माँ ने उनके एक छोटे से खेत की तस्वीरें मुझे भेजी जिसमें सीताफल, करेले, कद्दू, टमाटर, झींगा आदि सब्जियां उगी हुई हैं। मैंने पहले कभी इन सब्जियों के पौधे नहीं देखे! आज इन्हें देखकर मन खुश हो गया। ये तो उनकी छोटी सी बागबानी का नमूना है। फिलहाल उन्होने कुछ और बड़े खेतों में कपास बोयी है और अच्छे परिणामों की उम्मीद में खूब मेहनत कर रहे हैं।
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