Saturday, 12 May 2018

पापा की किसानी

मेरे पापा को हमेशा से शौक रहा कि वे खेती करें किसान बनेलेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों और आर्थिक रूप से कमज़ोर और लगभग भूमिहीन पृष्ठभूमि से होने के कारण वे कभी अपने इस सपने को साकार नहीं कर सके। बहुत छोटी सी उम्र से ही उन्हें घर-परिवार की जिम्मेदारियों की वजह से पढ़ाई छोड़ बहुत मेहनत वाले छोटे-मोटे काम-धंधे में घुस जाना पड़ा लेकिन इसके बावजूद वे हमेशा एक खुशमिजाज़ और जिंदादिल इंसान बने रहे और अपनी मेहनत और लगन के बल पर लगातार उन्नति करते रहे।
पापा बहुत अधिक पढ़-लिख नहीं सके लेकिन कोई उन्हें देखकर और उनसे बात करके यह नहीं समझ सकता कि वे कम पढ़े-लिखे हैं। वे हम लोगों की पढ़ाई-लिखाई तक की अच्छी खासी समीक्षा कर देते हैं और कड़ी पूछताछ कर हर चीज़ की कमजोरियाँ और खूबियाँ भी गिना पाने में सक्षम हैं। जीवन और समाज के गहरे अनुभव और व्यक्तियों के चरित्र की उन्हें गहरी पकड़ है।
आजकल वे अपने चिर लंबित सपने को पूरा कर रहे हैं। खेती कर रहे हैं। ब्रज के इलाके में कुछ खेत उन्होंने किराए पर लिये हैं। इन दिनों उनका उत्साह देखने लायक है। दिन भर मजदूरों के साथ खेतों में खुद भी जुटे रहते हैं। उनके जोश और उत्साह के आगे तो हम पानी भरते हैं! आज माँ ने उनके एक छोटे से खेत की तस्वीरें मुझे भेजी जिसमें सीताफलकरेलेकद्दूटमाटरझींगा आदि सब्जियां उगी हुई हैं। मैंने पहले कभी इन सब्जियों के पौधे नहीं देखे! आज इन्हें देखकर मन खुश हो गया। ये तो उनकी छोटी सी बागबानी का नमूना है। फिलहाल उन्होने कुछ और बड़े खेतों में कपास बोयी है और अच्छे परिणामों की उम्मीद में खूब मेहनत कर रहे हैं। 

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