
मुझे
लगता है कि वर्चस्व और शोषण की बुनियाद पर खड़ी हर विचारधारा अनिवार्यतः
पितृसत्तात्मक मूल्यों की भी पोषक होती है। इसलिए जब मैं ब्राह्मणवाद शब्द सुनती हूं
तो उसमें मुझे निश्चित रूप से पितृसत्ता की भी भयानक गूंज सुनाई देती है। लेकिन
पितृसत्ता की व्यापकता को अकेले ब्राह्मणवाद कवर नहीं कर सकता! इसलिए ब्राह्मणवादी
पितृसत्ता की की गई आलोचना महत्त्वपूर्ण होते हुए भी पितृसत्ता के एक सीमित संदर्भ
की ही आलोचना है। दुनियाभर की बात तो छोड़िए अगर सिर्फ भारत में ही पितृसत्ता की
सारी ज़िम्मेदारी ब्राह्मणवाद पर होती तो ब्राह्मणवाद के मुखर आलोचक गैर ब्राह्मण
नेताओं,
लेखकों (जिनमें कई दलित लेखक भी शामिल हैं) की पत्नियां, प्रेमिकाएं, बेटियां आदि उन्हीं से प्रताड़ित नहीं होती!!
इन बातों के दस्तावेज़ी प्रमाण उपलब्ध हैं।
मैं
कई सुशिक्षित ब्राह्मण ही नहीं गैर ब्राह्मण लड़कों को भी जानती हूं , जो ब्राह्मणवाद की जड़ें खोद देने का दावा किये फिरते हैं, लेकिन उन्होंने अपनी प्रेमिकाओं को अंत में सिर्फ इसलिए छोड़ दिया क्योंकि
वो उनकी जाति, धर्म या समुदाय से ताल्लुक नहीं रखती थीं! आज
जब वही लोग 'Smash Brahmnical Patriarchy' का पोस्टर शेयर
करते हुए मुझे दिख रहे हैं, तो मैं यही अर्थ लगा पा रही हूं
कि उस पोस्टर में उनके सरोकार का शब्द सिर्फ 'ब्राह्मणवाद'
या 'ब्राह्मण' भर है,
अगर उनकी गौण अभिरूचि पितृसत्ता में है भी तो वे उसे ब्राह्मणवाद का
विषय मान कर अपने भीतर की पितृसत्ता को सकारात्मक पितृसत्ता मानते हैं। हो सकता है
ऐसे पुरुषों को अपनी वाली पितृसत्ता, ब्राह्मणवादी पितृसत्ता
से निपटने के लिए निहायत ही ज़रूरी लगती होगी! आखिर लोहा ही तो लोहे को काटता है
न!!
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इस फोटो के ट्विटर पर शेयर होने के बाद कुछ लोगों ने प्रतिवाद किया। प्रतिक्रिया में कई लोगों ने Smash Brahminical Patriarchy के पोस्टर के साथ सोशल मीडिया पर अपना प्रोफाइल फोटो अपडेट किया। इस से सम्बंधित बीबीसी की एक खबर का लिंक : https://www.bbc.com/hindi/india-46281808 |
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