Friday 31 July 2020

सद्गति

आज हिन्दी साहित्य के पुरोधा प्रेमचंद का 140वाँ जन्मदिन है। मुझे सुबह से बार-बार 'सद्गति' का ध्यान आ रहा है। इस कहानी को हिंदी की चुनिंदा प्रभावी और उम्दा कहानियों में शामिल किया जाता है।

'सद्गति' पर भारतीय सिनेमा के सुप्रसिद्ध निर्देशक सत्यजीत रे ने 45 मिनट की एक छोटी सी फिल्म बनाई है। जो शुरू से लेकर आखिर तक आपको बांधे रखती है और मात्र 45 मिनटों में उन सारी यंत्रणाओं, उन सारे अत्याचारों का अनुभव आपको करवा देती है; जो हमारे समाज में दलित कही जाने वाली जातियों पर होते रहे हैं। हिन्दी साहित्य पर बने सिनेमा में मैं 'सद्गति' को सबसे बेहतर रूपांतरणों में गिनती हूँ। मेरे खयाल से सभी को यह फिल्म कम से कम एक बार ज़रूर देखनी चाहिए। मुझे इस बात का भी पूरा भरोसा है कि जब यह फिल्म बनी थी; उस समय यदि प्रेमचंद जीवित होते तो वे भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रहते। दुर्भाग्य से अपने जीवनकाल में सिनेमा की दुनिया से जुड़े उनके अनुभव कड़वे रहे थे। इतने अधिक की उन्होंने विस्तार से लिखे अपने एक लेख में साहित्य को दूध कहते हुए तत्कालीन सिनेमा को ताड़ी की संज्ञा दे डाली थी!


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