Sunday 20 November 2016

'मुझसे पहली सी मुहब्बत' के पीछे का हादसा !

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ अपनी नज़्म मुझसे पहली-सी मुहब्बत मिरे महबूब न मांगको नूरजहाँ की आवाज़ में सुनकर, इतने अधिक भावुक हो गए थे कि उन्होंने नूरजहाँ से कहा था कि ये नज़्म अब हमारी नहीं रही, तुम्हारी हो गयी ।
इस नज़्म के बारे में एक और बात यह कि फैज़ ने इसे अपने विवाह के बाद नहीं लिखा था, जैसा कि अक्सर समझ लिया जाता है । फ़ैज़ की मानें तो उन्होंने यह नज़्म किसी महबूब के लिए भी नहीं लिखी थी, इसके पीछे यदि कोई था तो वो कार्ल मार्क्स थे और था उनका कम्युनिस्ट मेनिफेस्टो! बकौल फ़ैज़ : इस नज़्म के पीछे का हादसा सिर्फ कार्ल मार्क्स का कम्युनिस्ट मैनिफेस्टो पढ़ना था । सिर्फ मैनिफेस्टो पढ़ने से लगा कि हम कहाँ पड़े हैं । तब यह नज़्म लिखी गयी थी ।

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