Wednesday, 26 July 2017

शेखर कपूर की 'बैंडिट क्वीन'

'मर्द तो साले होते ही मा........द हैं
जब आप 10-11 साल की बच्ची को स्क्रीन पर ये बोलते हुए सुनते हैं, तो रोंगटे खड़े हो जाते हैं। फिल्म में कम उम्र से ही प्रताड़ना की शिकार लड़की, उसमें निहित प्रतिकार की प्रबल भावना, जातीय अहंकार और अत्याचार के आगे उसकी बेबसी और अंततः बागी बन जाने तक की उसकी कहानी को इतनी संवेदनशीलता और कुशलता से फिल्माया गया है कि हम उस लड़की की यंत्रणा को अपने भीतर महसूस करने लगते हैं। समाज की सडांध से उसकी घृणा हमारे भीतर भी उतर आती है!
शेखर कपूर की 'बैंडिट क्वीन' इसलिए एक अलहदा फिल्म है। 1990 के दशक में एक अनछुए विषय पर इतनी सहज और सफल अभिव्यक्ति के साथ इतनी बोल्ड फिल्म बना देना ही अपने आप में बहुत बड़ी बात है।
समाज के एक बड़े और कड़वे सच को सामने लाने का बहुत ही जरूरी काम शेखर कपूर ने इस फिल्म के माध्यम से किया है। फूलन देवी इसी कड़वी सच्चाई की परिणाम थी! सीमा बिस्वास अपने इस रोल के लिए हमेशा जानी जाएंगीं।

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