Saturday, 25 November 2017

नील माधब की कड़वी हवा

नील माधब पांडा की फिल्मों मे पर्यावरण की चिंता कहीं न कहीं ज़रूर मौजूद रहती है । 'कड़वी हवा' में पर्यावरण के बदलते स्वरूप के दुष्प्रभावों को दिखाया गया है। लेकिन इसके अलावा इसके और भी कई आयाम हैं । मसलन कृषि संकट और कर्ज में डूबे किसानों की समस्या दिखाई गयी है, सरकारी उदासीनता और भारी असंवेदनशीलता दिखाई गयी है । गरीबी और लाचारी दिखाई गयी है ।
फिल्म दो घंटे से भी कम समय की है । धीमी गति से चलती है। जिस मोड़ पर आकर यह लगने लगता है कि असली कहानी अब शुरू होगी, ऐसे मोड़ पर आकर यह खत्म हो जाती है । यह फिल्म आपको समझाने के बजाय आपकी समझ पर अधिक यकीन करती है । सहजता से चलने वाली यह फिल्म भी एक जटिल कविता की तरह खत्म हो जाती है, जिसके अनेक अर्थ आपको तलाशने होते हैं ।
मेरी जानकारी में पूरे हैदराबाद में सिर्फ एक पीवीआर मल्टिप्लैक्स ने दिनभर में सिर्फ एक शो इस फिल्म के लिए रखा है । फिर भी दर्शक बहुत संख्या में नहीं जुट रहे हैं । पहले दिन के शो में लगभग डेढ़ सौ की क्षमता वाले हॉल में मुझे मिलाकर मात्र आठ लोग ही थे । शायद वीकेंड पर लोग घरों से निकलें ।
फिल्म की चिंता ईमानदार है । केन्द्रीय भूमिका निभा रहे संजय मिश्रा और रणवीर शौरी का अभिनय पसंद करने लायक है । फिल्म और अधिक संप्रेषणीय और अधिक प्रभावी बनायी जा सकती थी, लेकिन जैसी भी बनी है, सराहने लायक है । फिल्मकार व्यावसायिक फायदे के लिए अपने उद्देश्यों से समझौते नहीं करे, बेईमानी न करे, हमारे समय में फिल्म के दर्शको के लिए इससे बड़ा सौभाग्य क्या होगा !
मौका मिले तो हॉल में जाकर ऐसी फिल्म को इसलिए भी देखिए कि फिल्मकारों में ऐसी फिल्में बनाने का हौसला बचा रहे ।

#Kadwi Hawa #Neel Madhab Panda #Sanjay Mishra #Ranveer Shorey

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