Saturday, 16 December 2017

कितने सोलह दिसम्बर

पिछले हफ्ते हिसार की एक झुग्गी बस्ती में झकझोर देने वाली एक बेहद अमानवीय घटना घटी। एक मजदूर परिवार की एक चार साल की बच्ची जो रात मे अपनी माँ के साथ सो रही थी, को बहुत ही शातिर तरीके से वहाँ से उठा लिया गया। सुबह नींद खुलने के बाद जब माँ ने बच्ची की खोजबीन की, तब उस बच्ची की लाश घर से कुछ ही दूर एक गली में पाए जाने की सूचना मिली। जाँच से इस बात की पुष्टि हुई कि उस बच्ची का न सिर्फ़ बलात्कार किया गया था, बल्कि उसे मारने के लिए उसकी योनि के रास्ते लगभग एक फीट लंबी लकड़ी भी घुसायी गयी थी। उस बच्ची के शरीर पर जगह-जगह खरोंच के निशान पाए गये, और ज़मीन पर पटके जाने के कारण उसके नाक से भी खून बहने की बात कही गयी।
पिछले हफ्ते ही लखनऊ से भी मानवता को शर्मसार कर देने वाली एक बेहद दुखद ख़बर आ रही थी। ख़बरों के मुताबिक सोलह साल की एक लड़की घरेलू उपयोग के कुछ सामान खरीदने बाज़ार गयी हुई थी। वहाँ उसके किसी परिचित ने बाइक से उसे घर तक छोड़ देने का प्रस्ताव दिया। लेकिन उसे घर तक छोड़ने के बजाय छल पूर्वक एक सुनसान जगह पर ले जाकर, उसने अपने एक दोस्त के साथ मिलकर उस लड़की का बलात्कार किया और उसे वहीं छोड़ कर भाग गया। इसके बाद उसी हालत में लड़की ने पास से गुज़र रहे एक बाइक सवार से अपने साथ हुई दरिंदगी की घटना सुनाकर मदद मांगी, लेकिन उस आदमी ने भी मदद करने के बजाय फिर से उसका बलात्कार कर दिया। कथित तौर पर वह नाबालिग लड़की ब्लड कैंसर से भी जूझ रही है।
16 दिसम्बर 2012 को दिल्ली में बलात्कार की जो जघन्य घटना घटी थी, उसे आज पाँच साल पूरे हो गये हैं। इस घटना के बाद पूरे देश में एक जनाक्रोश देखा गया था। जगह-जगह लोगों ने प्रदर्शन किये और न्याय की मांग की। इन आंदोलनों का ही प्रभाव था कि जल्दी ही आरोपियों की गिरफ्तारी हुई और उन्हें त्वरित गति से सज़ा भी सुनायी गयी। यौन उत्पीड़न को लेकर पहले से भी कानून थे और इस घटना के बाद कुछ नये कठोर कानून भी बने, लेकिन असल समस्या इनके सही क्रियान्वयन की है, जिसको लेकर किसी सरकार ने कभी कोई गंभीरता नहीं दिखाई। यह एक बड़ा कारण रहा है कि यौन अपराधियो के हौसले लगातार बुलंद रहे हैं, और एक से बढ़कर एक जघन्यतम घटनाएँ घटती जा रही हैं।
16 दिसम्बर की घटना के बाद जो जनाक्रोश देखा गया था, उसे संयोग माना जा सकता है। ऐसा नहीं था कि उससे पहल जघन्य यौन हिंसा की घटनाएँ नहीं हुई थी, या फिर यह कि उसके बाद ऐसी घटनाएँ नहीं घट रही हैं। 16 दिसम्बरका सिलसिला कभी ख़त्म ही नहीं हुआ, न इसके आसार दिख रहे हैं। ख़त्म तो हमारा सामूहिक प्रतिरोध हुआ है, जिसने पाँच साल पहले सत्ता को झुकने पर मज़बूर कर दिया था। ख़त्म हमारी संवेदना हो रही है, जो इस तरह की जघन्य घटनाओं को महज़ एक ख़बर के बतौर पढ़ने की आदत में तब्दील होती जा रही है! 
#16December2012 #BrutalRapeCaseofDelhi #HisarBrutalRape #LukhnowDoubleRape

No comments:

Post a Comment