मेरे खयाल से हमारे देश के 99 प्रतिशत
युवाओं को धोती बांधना नहीं आता! सब्यसाची मुखर्जी को भी शायद ही आता होगा और यदि
आता भी है, तो किन्हीं सार्वजनिक कार्यक्रमों में तो
वे धोती पहने हुए नहीं ही दिखते हैं! जबकि दीपिका पादुकोण की तारीफ उन्होंने इस
बात के लिए की है कि वे अक्सर कार्यक्रमों में साड़ी पहनकर जाती हैं। इसके बावजूद
मैं ये कत्तई नहीं कह सकती कि धोती बांधना नहीं आना शर्म की बात है।
भई सिर्फ इसलिए कि आप साड़ियां बेचते हैं
तो आप ऐसा बयान देने के लिए स्वतंत्र नहीं हो जाते कि जिन युवा स्त्रियों को साड़ी
पहनना नहीं आता, उनके लिए ये बेहद शर्म की बात है और वो
स्त्रियां जड़ों से कटी हुई हैं। साड़ी पहनना या नहीं पहनना, साड़ी बांधना आना या नहीं आना व्यक्तिगत इच्छा, चयन
और सुविधा-असुविधा का विषय है या होना चाहिए।
सब्यसाची आप तो ऐसा बयान देने का अधिकार
इसलिए भी नहीं रखते, क्योंकि आप तो आम लोगों के
लिए साड़ियां बनाते ही नहीं! आपकी बनाई साड़ियों के दाम ही शुरू होते हैं 80-90
हज़ार से! इन्हें खरीदने का सपना ही जीवन भर एक आम स्त्री देख सकती है! 'आपकी' साड़ियां जो स्त्रियां पहनती हैं, वो जड़ों से जुड़े रहने के लिए नहीं सिर्फ फैशन के लिए पहनती हैं और उनमें
से भी अधिकांश तो इसलिए पहनती हैं, क्योंकि उन्हें वो
साड़ियां पहनने के भी पैसे मिलते हैं!!
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