अंतर्राष्ट्रीय
महिला दिवस पर जिन लोगों ने किसी भी तरह की चुटकियाँ लेते हुए लिखा है, मुझे इस दिवस पर उनकी समझ को लेकर संदेह है। पहली बात अच्छे से समझ लीजिए
कि यह दिवस बाज़ार केन्द्रित नहीं है और दूसरी बात कि यह दिवस सरकारों का दिया हुआ
'उपहार' भी नहीं है! 1975 में मिली संयुक्त राष्ट्र संघ की स्वीकृति भी इस दिवस का उद्गम स्थल नहीं
है। इसके पीछे खुद महिलाओं का संघर्ष है और उनके दीर्घकालीन संघर्ष की एक लम्बी
परंपरा है।
औरतों
ने सड़कों पर संघर्ष करके अपने हक सुनिश्चित किए हैं। कई लोगों को आश्चर्य हो सकता
है कि विभिन्न देशों में अपने अन्य अधिकारों के अलावा मताधिकार हासिल करने के लिए
भी महिलाओं को लंबा संघर्ष करना पड़ा है। दुनिया के आधुनिक समझे जाने वाले कई
देशों में भी महिलाओं को यह हक अपेक्षाकृत बहुत बाद में और बहुत संघर्षों के बाद
मिला है।
इस
दिवस पर सोशल मीडिया पर विशेषज्ञ व्यंग्य करने की बजाय अपनी उंगलियों को थोड़ा कष्ट
देकर गूगल सर्च तक पहुंचे तो, अधिक दूर नहीं तो कम से
कम सौ साल पीछे तो ज़रूर पहुंचेंगे जब 8 मार्च 1917 को रूस की मजदूर महिलाएं, रूस की तब की राजधानी
पेट्रोग्राड (अब सेंट पीटर्सबर्ग) की सड़कों पर थीं और ऐसा लग रहा था कि पूरा शहर
इन विरोध प्रर्दशन करने वाली महिलाओं से भर गया हो। 'रोटी और
शांति' के लिए विरोध प्रदर्शन और हड़ताल पर उतरी इन महिलाओं
की इस पहलकदमी को ज़ारशाही के खिलाफ रूसी क्रांति की शुरुआत भी माना जाता है! वैसे
अगर आप और पड़ताल करेंगे तो इस दिवस के बारे में कई-कई और परतें खुलती जाएंगी
बशर्ते आपकी यह सब जानने में रूचि हो!
कुल
मिलाकर मेरे यह सब लिखने का ध्येय यह है कि जो यह अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है, यह हमें मिला कोई 'कोमल उपहार' नहीं है। यह दिन इस बात पर विचार करने के लिए नहीं है कि, पुरूषों से कम से
कम आज के दिन महिलाओं को सहानुभूति मिलनी चाहिए या इस दिवस से प्रेरणा लेकर
पुरुषों को महिलाओं के साथ अच्छा व्यवहार करने की कोशिश करनी चाहिए! जब आप यह सब लिखते
हैं, तो आप महिलाओं के संघर्षों की लम्बी परम्परा की जलती
हुई मशाल पर पानी डालने की नाकाम कोशिश कर रहे होते हैं।
सहानुभूति, अच्छे व्यवहार की भीख जैसे शब्दों का इस दिवस से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं
है। यह दिवस महिलाओं के संघर्षों के प्रति सम्मान प्रकट करने का दिन है, इस संघर्ष को अनवरत बनाए रखने के लिए उर्जा हासिल करने का दिन है और साथ
ही साथ यह याद दिलाने का दिन है कि महिलाएं बराबरी का अपना हक सुनिश्चित करवाने का
माद्दा रखती हैं। कृपया कर इस दिवस को इसी रूप में समझें तो किसी और पर नहीं,
आप खुद पर ही उपकार करेंगे।
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