Saturday, 28 April 2018

माँ के लिए भेजी थी साड़ी पहुँचा कपड़े का टुकड़ा!


बीते 23 अप्रैल को हैदराबाद से मैंने अपनी माँ के लिए एक साड़ी भारतीय डाक की रजिस्टर्ड पार्सल सर्विस के माध्यम से दिल्ली भेजी थी। ट्रैक करने पर पता चला कि पार्सल परसों शाम को डिलीवरी पोस्ट ऑफिस (नांगलोई) पहुँच चुका था। चूँकि हमारे इलाके का डाकिया सही समय से जरूरी से जरूरी पत्र भी नहीं पहुंचाने के लिए जाना जाता है, इसलिए मैंने अपने भाई को कल पोस्ट ऑफिस जाकर पार्सल ले आने के लिए कहा था। पोस्ट ऑफिस में उसे किसी कर्मचारी ने कहा कि तुम लोगों के यहाँ इसलिए देर से पोस्टल आइटम्स पहुँचती हैं, क्यूंकि तुम लोग पोस्टमैन की सेवा-पानी (शायद टिप या घूस!) नहीं करते और साथ ही यह कहा कि तुम्हारा पार्सल पोस्ट ऑफिस में नहीं है और पोस्टमैन डिलीवरी के लिए ही गया हुआ है।
बायीं तरफ भेजी हुई साड़ी है और दायीं तरफ साड़ी कीजगह पंहुचा कपडे का टुकड़ा 
आज सुबह नौ-साढ़े नौ बजे के करीब डाकिये ने पार्सल मेरे घर पर पहुँचाया। वह इतनी हड़बड़ी में था कि उसने किसी से रिसीविंग तक नहीं ली! पार्सल खोलते ही मेरी माँ ने मुझे फ़ोन करके पूछा कि तूने ये क्या भेजा है? उसमें मरून रंग की साड़ी और ब्लाउज की बजाय फिरोज़ी रंग के एक-आध मीटर के कपड़े का एक टुकड़ा था। ये सुनते ही मैं सन्न रह गयी! साड़ी और सिलवाकर भेजे गये ब्लाउज की कुल लागत दो-हज़ार के लगभग थी और पैसों से भी अधिक उसके साथ जुड़ी मेरी भावना थी।
इंडियन पोस्ट के माध्यम से भेजे गये पार्सल कभी-कभार गायब हो जाते हैं, यह तो सुना था। लेकिन किसी एक सामान को बदलकर दूसरे सामान को रख देने का आरोप कुछ कुरियर कंपनियों पर ज़रूर लगता रहा है, लेकिन भारतीय डाक विभाग के रजिस्टर्ड पोस्ट को लेकर ऐसा मैंने आजतक नहीं सुना था। लेकिन आज तो उसे खुद भोग भी लिया! किसी ने बड़ी तफसील से पैकेट खोलकर साड़ी निकाली और उसमें कपड़े का एक टुकड़ा डाल कर टेप लगा दिया।
एक शिकायती टिप्पणी के साथ मैंने डाक विभाग को इसकी सूचना दे दी है और शिकायत के अन्य सभी विकल्पों पर भी विचार कर रही हूँ। बहरहाल डाक विभाग में शिकायत के लिए निर्धारित जितने भी फ़ोन नंबर हैं, उनपर या तो कॉल नहीं लग रहा या कॉल उठाया नहीं जा रहा! स्थानीय पोस्ट ऑफिस से यह भी पता चला है कि ऐसे मामलों में डाक विभाग मामूली पूछ-ताछ के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं करता और इस तरह की धोखा-धड़ी के शिकार उपभोक्ताओं को किसी तरह का कोई मुआवजा भी तब तक नहीं मिलता जब तक कि पार्सल भेजते हुए उन्होंने उसका इंश्योरेन्स नहीं करवाया हो! और इंश्योर्ड पार्सल का खर्च रजिस्टर्ड पार्सल से बहुत अधिक होता है।
आज घर पर एक फंक्शन है और मैंने इस भावना के साथ वो साड़ी भेजी थी कि माँ आज उसे पहन पाएंगी। डाक विभाग की इस धोखा-धड़ी का जब से पता चला है, तब से मन बहुत उदास है!

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