Monday, 30 April 2018

दादासाहेब फाल्के के फ़साने में राजा रवि वर्मा का ज़िक्र

भारतीय चित्रकला के बड़े प्रवर्त्तक राजा रवि वर्मा के जीवन पर बनी केतन मेहता की फिल्म 'रंगरसिया' में दो प्रसंग ऐसे हैं जो आधुनिकता और तकनीकी उन्नति के प्रति रवि वर्मा के सम्मान, अभिरूचि और उदारता को दिखाते हैं। रवि वर्मा ने जब कैमरे से खींची हुई तस्वीरों को पहली बार देखा तो चित्रकला की तुलना में श्रम और समय की भारी बचत और अधिक सटीक छायांकन को देखकर वे बहुत प्रसन्न हुए।
दूसरा प्रसंग यह है कि मुंबई (तब के बंबई) में जब 1896 में पहली बार ल्युमिरे बंधुओं ने फिल्म का प्रदर्शन किया था तो उन्होंने बंबई के तमाम गणमान्य नागरिकों को यह प्रर्दशन देखने के लिए आमंत्रित किया। राजा रवि वर्मा भी इस प्रर्दशन को देखने के लिए आमंत्रित किए गए थे। उन्होंने जब पर्दे पर चलती हुई तस्वीरों को देखा तो वे बहुत अधिक आश्चर्यचकित हुए। उन्होंने बहुत प्रसन्नतापूर्वक कहा कि अब तक तो चित्र सिर्फ उतारे जाते थे, लेकिन इस अविष्कार में तो चित्र हम सब की तरह चल-फिर रहे हैं! वाह! लाजवाब।
उसी प्रर्दशन में उन्होंने देखा कि एक नवयुवक ल्युमिरे बंधुओं को फिल्म प्रर्दशन में बड़े उत्साह के साथ हर तरह से सहयोग कर रहा था। बाद में इस युवक ने रवि वर्मा के सहायक चित्रकार के रूप में भी काम किया। जब रवि वर्मा की आर्थिक स्थिति खराब होने लगी थी तो उन्होंने अपना प्रेस बेच दिया था। इससे उन्हें जो राशि मिली उसका एक अच्छा-खासा हिस्सा अपने उस सहयोगी युवक को भी दिया था, जिसमें उन्होंने फिल्म कला के प्रति अभिरुचि और ललक देखी थी, ताकि वह अपनी इस अभिरुचि और ललक को दिशा दे सके‌। उस युवक की यात्रा आगे भी सरल नहीं रही लेकिन उस युवक में फिल्म कला के प्रति इतना अगाध समर्पण था कि उसने तमाम आर्थिक व अन्य चुनौतियों को पार करते हुए भारतीय फिल्म कला को स्थापित करने वाले व्यक्ति के रूप में ख्याति पाई। उस युवक का नाम धुंडीराज गोविंद फाल्के था, जिन्हें दादासाहेब फाल्के के नाम से भी जाना जाता है। आज दादासाहेब फाल्के का 148वां जन्मदिन है।
मुझे आज याद दादसाहेब को करना था लेकिन इस पोस्ट का एक बड़ा हिस्सा रवि वर्मा पर केन्द्रित हो गया, इसका कारण यह है कि रवि वर्मा की फाल्के को आर्थिक सहायता देकर फिल्म बनाने के लिए प्रोत्साहित करने की जो घटना है वह इसलिए भी हमेशा याद की जानी चाहिए, कि यह एक पारंपरिक कला विधा से जुड़ी बड़ी हस्ती का एक आधुनिक कला विधा को स्थापित करने में दिया गया योगदान भी है। ऐसा विरले ही होता है! इसलिए जब कभी भारतीय फिल्मों की चर्चा हो, उसके जनक दादासाहेब फाल्के के संघर्षों और योगदान की चर्चा हो तो उस चर्चा में राजा रवि वर्मा का ज़िक्र अनिवार्य रूप से होना चाहिए।

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