हमारे
देश का संविधान बताता है कि भारत एक धर्म/पंथ निरपेक्ष देश है, इसलिए संवैधानिक दायित्व से बंधी हुई किसी भी संस्था या व्यक्ति का पदों
पर रहते हुए धर्म निरपेक्ष होना अनिवार्य है। हाल ही में एक वीडियो वायरल हुआ है
जिसमें एक लड़की के साथ पुलिस वैन में मारपीट करते हुए और भद्दी-भद्दी गालियाँ देते
हुए पुलिस वाले कह रहे हैं : ‘एक हिन्दू होकर मुसलमान से
प्यार करती है? हिन्दू कम पड़ गये हैं क्या?’!
ख़बरों
के मुताबिक यह मेरठ का वीडियो है और एक हिन्दू युवती के एक मुसलमान युवक के साथ
होने की खबर सुनकर कुछ कट्टरवादी हिन्दू संगठन के सदस्यों ने जमा होकर उन्हें घेर
लिया था। कहने को तो पुलिस उन दोनों को यहाँ से अलग-अलग वैन में बचाकर ले जा रही
थी,
लेकिन वास्तव में पुलिस की वर्दी पहने ये लोग खुद सांप्रदायिक
गुंडों जैसी सोच रखने वाले थे और इस सच का सामना करना उस लड़की के लिए कितना भयावह
रहा होगा, इसकी मात्र कल्पना की जा सकती है।
इस
तरह के क्रूर या अभद्र तरीके तो छोड़िये, पुलिस को
किसी को प्यार या अपनेपन से भी यह समझाने का हक़ नहीं है, कि
किसे किस धर्म के लोगों से प्यार या दोस्ती करनी चाहिए और किससे नहीं। यह तय करना
किसी भी नागरिक का संवैधानिक अधिकार है और इसमें किसी तरह की बाधा को ख़त्म करना
सरकारी तंत्र और न्याय तंत्र का काम है। जब ऐसी संस्थाएं ही लोगों के संवैधानिक
अधिकारों को छीनने लगें, तो क्या किया जाना चाहिए? इसे साधारण अपराध की बजाय असाधारण अपराध की श्रेणी में रखा जाना चाहिये और
दोषी व्यक्ति या व्यक्तियों को न सिर्फ पदों से हटा देना चाहिए, बल्कि बेहद सख्त सज़ा दी जानी चाहिए।
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