यह
आंवला नहीं है और जो मुझे स्थानीय लोगों द्वारा बताया गया और मैंने सही-सही याद
रखा है,
तो यह आंवड़ा है। सुविधा के लिए इसे आंवले का छोटा भाई मान लीजिए,
जो अपने बड़े भाई से कई मायनों में अलहदा है।
मुरब्बे
के अलावा आंवले से बना कुछ और मुझे पसंद नहीं, फिर कच्चे
आंवले को नमक-मिर्च पाउडर के साथ खाने की तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकती। आंवले
में भरपूर खटास ही नहीं एक कसैलापन भी होता है, जो मेरे लिए
नाकाबिले बर्दाश्त है।
बात
आंवडों की करते हैं। मैसूर के टूरिस्ट प्लेसेज़ पर डिस्पोजेबल ग्लास में नमक और
मिर्च पाउडर में सने छोटे-छोटे आंवड़ों को ऊपर तक भरकर बेचा जा रहा था। हालांकि
सौरभ ने इसे खरीदा आंवला समझ कर ही था, लेकिन जब खाकर इसका स्वाद कुछ अलग लगा तो
उन्होंने मुझे और हमारे साथ घूमने निकले दो और साथियों प्रमोद और अजित को भी
इन्हें चखने के लिए दिया। यह हम सभी को इतना मज़ेदार लगा कि हमने इसे जमकर खाया और
दिलचस्प यह था कि उस दस या बीस रूपये में खरीदे गए ग्लास में छोटे-छोटे इतने
आंवड़े थे कि खत्म होने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
आंवले
का कसैलापन इसमें बिल्कुल भी नहीं था और आंवले की तुलना में यह मुलायम भी था।
हल्का मीठापन लिए और ढेर सारा खट्टापन लिए यह आवड़ा खाने में इतना मज़ेदार था कि
अभी जब मैं यह पोस्ट लिख रही हूं, तब भी इसे सोच-सोचकर
मेरे मुंह में पानी आ रहा है।
आंवड़े
की तस्वीर तब तो नहीं उतार पाई थी, लेकिन संयोग
से कुछ देर बाद इस आंवड़े का एक पेड़ ही कहीं दिख गया और नीचे कुछ आंवड़े भी गिरे
हुए थे। आंवड़े और उसके पेड़ की
तस्वीर यहां साझा कर रही हूं। ताकि आप इसे पहचान लें और जब कभी मैसूर जाने का मौका
मिले तो इसे ज़रूर चखें।
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