जिस समय भारत में सभी
धर्मों के लोग मिल जुलकर नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का
विरोध कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें लगता है कि यह कानून हमारे
संविधान द्वारा प्रस्तावित धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत के खिलाफ़ है; ठीक उसी समय पाकिस्तान की एक जिला अदालत ने 33 साल के युवक जुनैद हफीज़ को
इसलिए मौत की सजा सुनाई है, क्योंकि उनपर ईश-निंदा का आरोप
है!
2013
में जब जुनैद सिर्फ 27 साल के थे और बहाउद्दीन ज़कारिया विश्वविद्यालय, मुल्तान में लेक्चरर थे; तभी ईशनिंदा का आरोप लगाते
हुए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। पाकिस्तान की भयावह स्थिति का अंदाजा इस बात
से लगाया जा सकता है कि जुनैद की पैरवी करने के लिए तैयार हुए वकील की 2014 में
गोली मारकर हत्या कर दी गई। इसके बाद उनके केस की पैरवी के लिए वकील तक मिलना बेहद
मुश्किल हो गया। इतना ही नहीं इन छ: सालों में जुनैद पर जेल में कई बार जानलेवा
हमले हुए। ये है मानवाधिकार के चैम्पियन बनने की होड़ में लगे इमरान खान के नए
पाकिस्तान की हकीक़त!
जुनैद
को अमेरिकी साहित्य, फोटोग्राफी और थिएटर में
विशेषज्ञता हासिल है। अमेरिका में फुल-ब्राइट स्कॉलरशिप के साथ उन्होंने अपना
मास्टर्स पूरा किया था। एक ऐसे प्रतिभाशाली युवक को जिससे पाकिस्तान को बहुत लाभ
हो सकता था, धर्म की आड़ में मौत दे दी जाएगी! कल रात जब से
ये खबर पढ़ी है, तब से बहुत डिस्टर्ब्ड हूँ।
हमें
किसी भी तरह की धर्मांधता और कट्टरपंथ से इसीलिए डर लगता है। इसलिए हम 'पाकिस्तान' होते जाने से डरते हैं। हम सबकी पहली
खुश-नसीबी तो यही है कि हम किसी 'पाकिस्तान' में नहीं; हिन्दुस्तान में रहते हैं। इस हिन्दुस्तान
को 'हिन्दुस्तान' बनाए रखने की फिक्र
इसलिए हमें बराबर बनाए रखनी होती है!
दुनिया
भर के देशों का यह दायित्व है कि वे जुनैद के मानवाधिकार के लिए सख्ती के साथ खड़े
हों और पाकिस्तान को इस बात के लिए मजबूर कर दें कि वो जुनैद को रिहा करे। साथ ही
दुनिया भर में ईशनिंदा जैसे कानून का कोई अस्तित्व न रहे; इसके लिए भी सभी देशों को मिलकर काम करना चाहिए।
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