Sunday 18 December 2016

'मैन्स वर्ल्ड' टू वर्ल्ड ऑफ इक्वालिटी

      लड़कियाँ अक्सर ये सोचती-कहती हैं कि लड़के तब तक उनकी चुनौतियों और परेशानियों को नहीं समझ सकते, जबतक वे खुद लड़की नहीं बन जाते । कुछ अपवादों को छोड़ दें तो अक्सर लड़के यही सोचते हैं कि आज-कल लड़कियों को कहीं कोई दिक्कत नहीं है बल्कि उन्हें लड़की होने के फायदे अधिक मिल रहे हैं - चाहे बस में सीट हो, नौकरी में प्रमोशन हो, लड़कों का अट्रैक्शन हो या कोई नखरे उठाने वाला हो ! और जब इन्हें थोड़ी बहुत भी परेशानी हो जाए तो फेमिनिज्म का झंडा उठा लेती हैं ! लेकिन क्या सच में ऐसा ही है?
    इस तरह सोचने वालों के लिए मैं एक रिकमंडेशन करना चाहूँगी । पिछले साल ‘वाय फिल्म्स’ ने एक वेब सीरीज इंटरनेट पर रिलीज की थी- ‘मैन्स वर्ल्ड’- इसे जरूर देखिये । इस दुनिया में पुरुष और स्त्रियों की भूमिकाएँ यदि बदल जाए तो क्या होगा? चार एपिसोड के इस वेब सीरीज में इसे बेहद महीन तरीके से फिल्माया गया है । इसकी खासियत यह है कि इसकी महीनता के बावजूद इसकी प्रस्तुति बहुत सरल-सहज है । यह ऐसी दुनिया को महसूस करने का मौका देता है जहाँ पुरूषसत्ता, स्त्रीसत्ता में स्थांतरित होती है । इस दुनिया में स्त्री के प्राकृतिक दायित्व जैसे मासिक धर्म और गर्भधारण भी पुरुषों के जिम्मे होते हैं । यह सीरीज इस नयी दुनिया में एक पुरुष की चुनौतियों और जटिलताओं को दिखाती है और इसे तुलनात्मक रूप से समझने का अवसर भी देती है ।   
      पुरूषसत्ता का विकल्प स्त्रीसत्ता नहीं है । वर्चस्व पुरूष का हो या स्त्री का अपनी प्रकृति और परिणाम में में वह नकारात्मक ही होगा । इसलिए संवेदनशील औरतें अथवा संवेदनशील पुरुष बराबरी की दुनिया की इच्छा करते हैं, या इसके लिए प्रयत्नशील रहते हैं । मेरे खयाल से यह वेब सीरीज बराबरी की दुनिया की जरूरत का एहसास करा पाने में पर्याप्त प्रभावी है ।






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