युवा चीनी सैनिक वांग छी (साभार : बीबीसी हिन्दी) |
पिछले 54 सालों से वांग को इस पल का इंतज़ार था । मरने से पहले कम से कम एक बार वे अपने वतन लौटकर अपने लोगों से मिलना चाहते थे । देश की सीमाएँ यदि एक यथार्थ के बतौर स्वीकार कर ली गयी हैं, तो करुणा को भी एक अनिवार्यता की तरह अंगीकार कर लेना चाहिए !
पाकिस्तान की एक जेल में वतन वापसी की प्रतीक्षा कर रहे सरबजीत का यातनाओं से दम तोड़ देने, जैसी घटनाएँ – सीमा रेखाओं की मर्यादा और मजबूती को स्थापित नहीं करती – बल्कि मानवीय करुणा के समाप्त होते जाने का संकेत देती हैं । इसे बचा कर रखना ही होगा । मनुष्यता बची रहेगी तभी हम मनुष्य बचे रहेंगे । बहुत बधाई वांग छी को और बधाई अपने देश को भी जिसने देर से ही सही, कागजी खामियों को दूर किया, यह करुणा हमारी प्रतिष्ठा को बढ़ाएगी ही । धन्यवाद बीबीसी के उन मीडिया कर्मियों का भी जिन्होंने वांग छी के मुद्दे को मजबूती से उठाया ।
(साभार : बीबीसी हिन्दी)
धन्यवाद के पात्र हमारे ही देश के वे लोग भी हैं, जिन्होंने वांग छी को अपने समाज का हिस्सा बनाकर अपनाया, उन्हें रोजगार दिया, उनकी शादी करवाई । जिनकी वज़ह से वांग छी को चीन जाकर यह शिद्दत से महसूस होगा कि भारत भी उनके लिए पराया देश नहीं है ।
[बीबीसी की संबंधित ख़बर का लिंक : चीनी सैनिक वांग छी चले घर की ओर : विनीत खरे]
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