Thursday, 7 September 2017

वे नहीं जानते वे क्या कर रहे हैं!

हाल ही में 'मीट एंड लाइवस्टॉक ऑस्ट्रेलिया' के एक विज्ञापन में हिन्दुओं के देवता गणेश को मेमने का मांस खाते हुए दिखाया गया है । जबकि मिथक कथाओं और लोक आस्था के अनुसार गणेश शाकाहारी हैं, और वे मनुष्य और पशुओं के समन्वय के प्रतीक भी है । उनका धड़ मनुष्य का है तो सिर हाथी का है । हाथी भी शाकाहारी पशु होते हैं । टू लैंबद मीट वी कैन ईट ऑलकी स्थापना के साथ ख़त्म होने वाला यह विज्ञापन इन सभी कोमल और संवेदना से भरी मान्यताओं की धज्जियाँ उड़ाकर रख देता है । यह शाकाहार और पशुओं के प्रति संवेदनशीलता के विचार पर भी आघात है ।
सवाल सिर्फ आस्था का नहीं है, सवाल उस मानसिकता का है, जिस वजह से देवी देवताओं के चित्र कभी चप्पलों, तो कभी टॉयलेट सीट पर उकेरे जाते हैं, तो कभी उन्हें मांस खाते हुए दिखाया जाता है, या कुछ और जो अपमानजनक हो! वह भी सिर्फ विवाद पैदा कर बेजा लाभ उठाने के लिए ! इस तरह की मानसिकता की आलोचना कर इसे हतोत्साहित करने की आवश्यकता है ।
देवी देवताओं को सिर्फ धर्म और आस्था से ही जोड़कर नहीं देखना चाहिए । ये हमारी सांस्कृतिक अस्मिता के भी अभिन्न अंग होते हैं। मिथक कथाएँ हमारी सांस्कृतिक विरासत हैं । इन पर तर्क-वितर्क और आलोचना इन्हें समृद्ध ही करते हैं, लेकिन इनकी अतार्किक और विकृत व्याख्या या प्रस्तुति मन पर ही नहीं पूरी, सांस्कृतिक अस्मिता पर चोट पहुँचाने वाली होती हैं ।
फिर भी हमारा बड़प्पन इसी में है कि हम ऐसी किसी भी परिस्थिति में उग्र न हों, संयम रखें और सहिष्णुता का परिचय देते हुए इस अंदाज़ में सोचे कि 'वे नहीं जानते कि वे क्या कर रहे हैं ।' इस तरह के उदार आचरण को आत्मसात कर लेना भी वास्तव में एक बड़ी सांस्कृतिक उपलब्धि होती है ।

सम्बंधित विज्ञापन का यूट्यूब लिंक : https://www.youtube.com/watch?v=f8kuoFGgj8s

#YouNeverLambAlone #MeetAndLivestockAustralia #Ganesh #Ganpati #Advertisment 

No comments:

Post a Comment