सचिन देव बर्मन के संगीत ने हिन्दी सिनेमा को जितना समृद्ध किया, समृद्धि देने की उतनी ही ताकत उनकी आवाज़ में भी थी। लेकिन अफसोस कि उनकी
आवाज़ का हिन्दी सिनेमा में बहुत कम उपयोग हो पाया! मेरे खयाल से इसका बड़ा कारण
हिन्दी सिनेमा का वो ट्रेंड रहा है, जहां पार्श्व गायन का
अर्थ ही होता है फिल्म के नायक या नायिका के होंठों से उसका बुदबुदाया जाना और एस
डी की आवाज़ ऐसी उन्मुक्त आवाज़ थी, जिसकी संगति हिन्दी
सिनेमा के नायकों की बनी बनाई छवि के साथ बिठा पाना बहुत कठिन हो जाता होगा। लेकिन
जब भी ऐसा संयोग बना कि एस.डी ने हिन्दी सिनेमा के लिए गाया, तो क्या अद्भुत प्रभाव पैदा हुआ।
उन्हें
सुनते हुए ऐसा लगता है, जैसे कहीं बहुत दूर...
से कोई सुकून भरी आवाज़ हमारी ओर चली आ रही हो। जैसे गाने वाला सिर्फ अपने भावों
की अभिव्यक्ति ही न चाहता हो बल्कि सुनने वालों के दुख-दर्द भी बांट लेना चाहता
हो! एस.डी के गाए गीत संख्या में भले ही बहुत कम हों लेकिन जितने भी हैं, हम सब के लिए अनमोल विरासत की तरह हैं। जिन्हें आनेवाली पीढ़ियां भी
ढूंढ-ढूंढ कर सुनना चाहेंगी!
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