Saturday, 7 October 2017

ऐ मोहब्बत तेरे अंजाम पे रोना आया

अख्तरीबाई जब अपनी शोहरत की बुलंदियों पर थीं, तब उन्हें लखनऊ के एक जाने माने  वकील इश्तियाक अहमद अब्बासी से मोहब्बत हो गयी, यह मोहब्बत एकतरफा नहीं रही, लेकिन शादी इस शर्त पर तय हुई कि उन्हें गाना छोड़ना पड़ेगा । इश्क के लिए यह बड़ी कीमत मांगी गयी थी, जिसे अख्तरीबाई ने स्वीकार कर लिया था । 1945 में उनकी शादी हुई और इसके बाद से ही वे बेगम अख्तर कहलाने लगीं ।
सिगरेट की बुरी लत ने बेगम अख्तर को फेफड़े की बीमारी तो दी ही थी, इसके साथ ही शादी के बाद उनकी छूट चुकी गायकी और माँ के देहांत से मिले सदमे ने उन्हें अवसाद की ओर भी धकेल दिया । अपनी माँ से  उनका जुड़ाव बहुत गहरा था । मैं मानती हूँ कि गायकी से भी उनका जुड़ाव उतना ही गहरा था, लेकिन मानवीय सम्बंधों और संवेदनाओं को वे गायकी से भी बहुत अधिक महत्व देती  थीं । लगभग चार वर्षों तक गायन से दूर रहने के बाद, अवसाद के दिनों में जब उन्हें एक डॉक्टर के पास ले जाया गया, तब डॉक्टर ने गायकी से उनकी जबरन बनायी गयी दूरी को अवसाद के एक बड़े कारण के रूप में पहचाना और अब्बासी साहब से कहा कि उन्हें अवसाद से बाहर लाने का एक ही रास्ता है कि उन्हें फिर से गाने दिया जाए । महफिलों में तो नहीं लेकिन बेगम को आकाशवाणी के लखनऊ केन्द्र में गाने की इजाज़त मिल गयी । गायन के फिर से शुरू हुए इस सिलसिले ने उन्हें अवसाद से बाहर आने में बहुत मदद की ।
मोहब्बत और शादियों से जुड़ी शर्तें और समझौते न जाने कितनी औरतों की जिंदगी में अवसाद भरते रहे हैं । मोहब्बत या शादी के एवज में किसी औरत की ख़ास पहचान या उसके व्यक्तिव के मूल में मौजूद विशेषता को ही खत्म कर देने की शर्ते, कोई किस तरह रख सकता है! कई संभावनाशील और प्रतिष्ठित अभिनेत्रियों को उनके पतियों ने शादी के बाद अभिनय से दूर कर दिया । कई  स्पोर्ट्स वुमेन के प्रदर्शनों से प्रभावित प्रेमियों ने उनसे इस शर्त पर ही शादी की कि वे बहुत खेल चुकीं, अब सिर्फ परिवार चलाने पर ध्यान देंगी । इसी तरह शिक्षा और कौशल के क्षेत्र में बहुत प्रतिभा सम्पन्न रही लड़कियों से ब्याह करते हुए यह शर्त रखी गयी कि वे नौकरियों या व्यवसाय में नहीं जाएँगी । यह वैसा ही है जैसे जिस विशेषता से हम प्रभावित हों, उसे ही नष्ट करने पर तुल जाएँ, कि जिससे हम प्यार करें, उसे ही ख़त्म कर देने पर आमदा हो जाएँ !
बेगम अख्तर की गायकी के छूटने और उनके अवसाद में चले जाने से अकेले उन्हीं का नुकसान होना था, ऐसा नहीं है । फर्ज़ करिए कि उन्होंने 1945 के बाद गाया ही नहीं होता तो आज उनके गाने के कई बेहतरीन रिकॉर्ड से हम और हमारी सांस्कृतिक विरासत वंचित ही रह जाते । इसी तरह जब किसी भी कुशल और प्रतिभाशाली स्त्री को विवाह संस्था, प्रतिष्ठा वगैरह की दुहाई देकर घर तक सीमित कर दिया जाता है, तो वह स्त्री जितना अधिक घाटा उठाती है, उससे भी कहीं अधिक घाटा यह समाज उठाता है, जो संभावित उपल्ब्धियों और बेहतरी से बुरी तरह चूक जाता है।
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