मुझे
बहुत अधिक गुस्सा तब आता है, जब स्त्रियाँ और खासकर
जिम्मेदार पदों पर बैठी स्त्रियाँ, यौन उत्पीड़न जैसी किसी
घटना के बाद असंवेदनशील बयान देती हैं । 17 नवम्बर को चंडीगढ़ में एक लड़की के साथ
हुए गैंगरेप के बाद वहीं की सांसद किरण खेर का बयान आया है । उन्होंने कहा कि आजकल ज़माना बहुत खराब है, लड़कियों को अपनी सुरक्षा
का ध्यान रखना चाहिए । जब तीन लड़के पहले से ऑटो में बैठे थे, तो लड़की को उस ऑटो में बैठना ही नहीं चाहिए था!
मोहतरमा
किरण खेर जी को कौन समझाए कि सबके पास आपकी तरह गाड़ियाँ और बॉडीगार्ड नहीं होते ।
सबके पास इतना पैसा भी नहीं होता है कि अपने लिए टैक्सी बुक करवा लें । अक्सर हम
सबको शेयर ऑटो लेना ही पड़ता है, और कई बार उसमें भी यह
विकल्प नहीं होता कि हम अपनी पसंद से तय कर लें कि किस तरह की सवारियों वाले ऑटो
का चयन करें । सच तो यह है कि कई बार घंटों तक ऑटो नहीं मिलते और मिलते हैं तो
जाने को तैयार नहीं होते ।
किरण के सोचने विचारने की क्षमता को कमज़ोर समझ कर तो
फिर भी उनके इस बयान को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है, लेकिन तब नहीं जबकि वे उस इलाके की
सांसद हैं और केन्द्र की सत्ताधारी पार्टी की एक प्रतिष्ठित सदस्य भी हैं । किरण
को जब चरमराई हुई पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम और लचर सुरक्षा व्यवस्था को लेकर माफी
मांगनी चाहिए थी और जब इन सब को लेकर काम करने की ज़रूरत थी, तब
अपनी जिम्मेदारियों से मुँह मोड़कर, भद्दे उपदेश देने में लग जाना
कम समझ का नहीं धूर्तता और बेहयायी का मामला होता है । पता नहीं क्या सोचकर चंडीगढ़
के लोगों ने गत लोकसभा चुनाव में गुलपनाग के ऊपर किरण खेर को तरजीह दी थी !!
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