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“सई परांजपे की फिल्मों की रेंज बहुत व्यापक है । उन्होंने कृषकों, मजदूरों, बेरोज़गार युवकों, अकेली स्त्रियों, शारिरिक चुनौतियों से जूझ रहे लोगों आदि की समस्यायों को अपने सिनेमा में पूरी शिद्धत से उतारा है । सई की बहुत बड़ी खासियत यह है कि उनकी फिल्मों की जान इनके कथातत्व मात्र नहीं हैं, बल्कि बहुत सतर्कता से किया गया दृश्य संयोजन, कैमरे से उतारे गये सरल प्रतीक और इसके पीछे की बेहतर सोच है। सई एक ऐसी फिल्मकार हैं, जिन्होंने पुरूष वर्चस्व के इस क्षेत्र में न सिर्फ अपना एक मुकाम बनाया बल्कि वो हिन्दी सिनेमा को सार्थक दिशा देने वाले और इसकी ऐतिहासिक परंपरा को वास्तव में समृद्ध करने वाले अग्रणी निर्देशकों में से एक हैं ।”
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['आजकल' (मार्च-2018 अंक) में प्रकाशित]
आपका ये आलेख बहुत महत्वपूर्ण है । ये संयोग है की साज को छोड़कर बाकी सभी फिल्मे मैंने पहले ही देख ली थी जो मुझे बहुत पसंद आई थी लेकिन एक आम भारतीय दर्शक की तरह निर्देशक पर मेरा ध्यान नहीं गया । देखते समय मुझे लगा की इसके निर्देशक श्याम बेनेगल होंगे बाद मे मैंने देखा की नहीं परांजपे जी है । आपने ये सही लिखा की फिल्मी दुनिया मे महिला निर्देशक बहुत कम हुई है उस दौर मे तो बहुत ही कम । सई परांजपे से परिचय कराना आपका एक महत्वपूर्ण कार्य है । फिल्म की संवेदना को भी पकड़ने मे आप कामयाब रही । बस एक सुझाव देना चाहूँगा की फिल्म की समीक्षा करते समय उसके संवादो का जरूर प्रयोग किया करिए उससे लेख और प्रभावी होगा । ऐसे ही आप लिखते रहे बहुत -बहुत शुभकामनायें
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