Tuesday, 10 April 2018

होम्योपैथी की ज़रूरत

दवाइयां खाना मुझे कभी भी अच्छा नहीं लगता। फिर भी ज़रूरत पड़ने पर दवाइयां लेनी पड़ती हैं और तब मैं एकसाथ बीमारी और दवाई दोनों का दुष्प्रभाव झेलती हूं। ख़ासतौर पर किसी भी तरह के एंटीबायोटिक मुझे सूट नहीं करते और इनके साइड-इफेक्ट्स से मुझे अक्सर जूझना पड़ता है।
लेकिन दवाइयों का एक ऐसा प्रकार भी है, जिन्हें मैं तब भी खा सकती हूं जब मैं बीमार न रहूं। मैं हौम्योपैथिक दवाइयों की बात कर रही हूं। ये दवाइयां मूल रूप में तो लिक्विड फॉर्म में होती हैं लेकिन इन्हें अक्सर मीठी गोलियों में डालकर दिया जाता है और यही वह बात है जो हौम्योपैथिक दवाइयों को बच्चों की भी प्रिय बना देती हैं।
रंग-बिरंगी छोटी-छोटी बोतलों में मीठी-मीठी सफेद गोलियां देखकर ही मन खुश हो जाता है। इसके अलावा मेरे अनुभव का निचोड़ यह है कि हौम्योपैथिक दवाइयां यदि कुशल चिकित्सक के द्वारा दी जाएं तो यह बहुत असरदार होती हैं और जिन बीमारियों के लिए ऐलोपैथिक चिकित्सा सीधे-सीधे उपलब्ध नहीं है उन बीमारियों में हौम्योपैथिक दवाइयां न केवल असर करती हैं बल्कि उन्हें जड़ से हटा पाने में भी कामयाब होती हैं।
हौम्योपैथिक चिकित्सा निदान के लिए प्रर्याप्त धैर्य की मांग करती है और तेजी से भागते इस समय में धैर्य को बनाए रख पाना बहुत कठिन हो गया है, इसलिए हौम्योपैथिक चिकित्सा की लोकप्रियता में लगातार गिरावट हुई है और अब तो हौम्योपैथिक चिकित्सकों का भारी अभाव भी दिखने लगा है। इस दिशा में गंभीरतापूर्वक ध्यान दिए जाने और पहल किए जाने की ज़रूरत है। यह सस्ती और संभावनाओं से भरी चिकित्सा पद्धति है।
आज विश्व हौम्योपैथी दिवस है। मेरी यही कामना है कि हौम्योपैथी के क्षेत्र में नवीन अनुसंधान हों और इसके द्वारा होने वाले इलाज पर लोगों का यकीन बने।

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