कल
एक परीक्षा के सिलसिले में सिकंदराबाद के पास के एक इलाके में जाना हुआ। विभाग के
कई अन्य साथी भी वहां परीक्षा देने आये हुए थे। वापसी में हम छ: लोग एक
साथ थे। लोकल ट्रेन लेने के लिए हम लोग बस से निकले और बस से उतरकर स्टेशन तक की
दूरी हमने पैदल ही तय करने की सोची। इसका बहुत अच्छा परिणाम यह मिला कि चलते-चलते
हम उस इलाके में दाखिल हुए जहाँ ओस्मानिया यूनिवर्सिटी के किसी डिपार्टमेंट का
रास्ता दिखाने वाला साइन बोर्ड लगा हुआ था, यानी कि हम
ओस्मानिया यूनिवर्सिटी के इलाके में थे। पिछले चार-पांच साल से हैदराबाद में होने
के बावजूद यहाँ के सबसे पुराने विश्वविद्यालय ओस्मानिया में जाने का मौका अब तक
नहीं मिल पाया था। जबकि मेरी यह इच्छा हमेशा से रही है कि हैदराबाद के जितने भी
प्रमुख विश्वविद्यालय हैं उन्हें कम से कम एक बार ज़रूर देख लूँ। कल का दिन इस
लिहाज़ से बहुत सफल साबित हुआ। हमने तत्काल तय किया कि इस संयोग का फायदा उठाते हुए
ओस्मानिया यूनिवर्सिटी घूम लिया जाये।

हालांकि
इतनी भव्य इमारत के बावजूद जो चहल-पहल इसके इर्द-गिर्द दिखनी चाहिए थी वह गायब थी
और लड़कियाँ तो इक्का-दुक्का ही कहीं-कहीं दिख रही
थीं। ओस्मानिया एक क्लोज़ कैंपस नहीं है और इस वजह से दिल्ली विश्वविद्यालय की तरह
यहाँ भी बाहर की गाड़ियाँ और लोग बेधड़क आ-जा रहे थे। जितनी देर हम ओस्मानिया घूमते
रहे हमें यही लगा कि अच्छे-खासे क्षेत्रफल और अच्छे भौगौलिक परिवेश में होने के
बावजूद शिक्षण संस्थानों का जैसा माहौल होना चाहिए उसका वहां अभाव है। यह भी हो
सकता है कि यह सिर्फ उस दिन विशेष का अनुभव हो और जैसा मुझे महसूस हुआ, ज़रूरी नहीं कि वही वास्तविकता हो।

ओस्मानिया
में घूमते हुए ही हमें पता चला कि हैदराबाद का एक अन्य प्रमुख विश्वविद्यालय ‘इफ्लू’ (English and Foreign Languages University) पास
में ही ठीक सड़क के दूसरी तरफ स्थित है। यह एक और संयोग था तो हम सबने तय किया कि
लगे हाथ वहाँ भी घूम लिया जाये। हैदराबाद विश्वविद्यालय से एम.ए करने वाला एक
छात्र उस्मान जो अब वहाँ पीएचडी कर रहा है, उसने इफ्लू में
हमारीअगवानी की और अपनी यूनिवर्सिटी में हमें घुमाया। इफ्लू बहुत बड़ा कैंपस नहीं
है लेकिन वह जितने दायरे में फैला हुआ वह अपने आप में सम्पूर्ण और सुव्यवस्थित है।
यहाँ आकर एक बहुत ही महत्वपूर्ण बात पता चली, वह यह कि इस
विश्वविद्यालय में लड़कियों की संख्या लड़कों की अपेक्षा बहुत अधिक है (एक छात्र के
मुताबिक लगभग चौगुनी) और इसीलिए यहाँ लड़कों के लिए एक हॉस्टल है वहीं लड़कियों के
लिए तीन या चार हॉस्टल हैं। यह वाकई बड़े आश्चर्य और ख़ुशी की बात है।
इस
यूनिवर्सिटी की जो सबसे बड़ी खासियत है वह यहाँ का माहौल है, खासतौर पर लड़के-लड़कियों के साथ होने, घूमने, पसंद के कपड़े पहनने और सुरक्षा वगैरह को लेकर ये कैंपस बहुत ही अच्छा माना
जाता है और यहाँ छात्रों के व्यक्तिगत जीवन की निगरानी करने या दखल देने जैसी
बातें नहीं सुनने को मिलती। हालाँकि यह बात कुछ रूढ़िवादी शिक्षकों को चुभती भी है,
लेकिन वे सिवाय चिढ़ने के कुछ कर नहीं सकते! ऐसी ही एक शिक्षिका से
कल वहाँ रूबरू होने का मौका भी मिला। मेरे इतना भर कहने पर कि इफ्लू मुझे बहुत अच्छा
कैंपस लगा, उन्होंने कहा कि ‘हाँ कुछ
ज्यादा ही अच्छा है! अभी तो आपने कुछ भी नहीं देखा! शाम के बाद तो यह
विश्वविद्यालय इंग्लैंड बन जाता है’ उन्होंने आगे कहा ‘इतनी अधिक पश्चात्यता उचित नहीं’!
ओस्मानिया
और इफ्लू एकदम पड़ोसी विश्वविद्यालय हैं जो बिलकुल आमने-सामने हैं, इसके बावजूद दोनों जगह के माहौल में जो बहुत बड़ा अंतर है उससे यह पता चलता
है कि किसी भी शैक्षणिक संस्थान के माहौल को मजबूत इरादों के साथ मनचाहे तरीके से
ढाला जा सकता है। इफ्लू में छात्रों को जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता है उसका सकारात्मक
परिणाम इस तरह भी दिखता है कि यहाँ अराजकता की बजाय छात्रों में एक तरह का अनुशासन
है। लड़के-लड़कियों के बीच भेदभाव नहीं के बराबर है और उनके बीच असामनता या संदेह की
बजाय दोस्ताना रिश्ता है। मेरे खयाल से हर विश्वविद्यालय को माहौल के स्तर पर
इफ्लू जैसा ही होना चाहिए। इस तरह के माहौल में ही समुचित विकास और कुंठा रहित
अच्छी सोच का निर्माण संभव है।
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