जातीय, वर्गीय या किसी अन्य तरह की 'प्रतिष्ठा' के नाम पर प्रेमी जोड़ों की हत्या करवाने वाले परिजनों की प्रतिष्ठा कभी
बढ़ी हो, ऐसा शायद इतिहास में कभी नहीं हुआ है। कुकर्मी
हत्यारों के रूप में उनकी बदनामी चारों तरफ जरूर फैल जाती है। पता नहीं क्यों फिर
भी यह सिलसिला थमने का नाम नहीं लेता और न जाने किस प्रतिष्ठा या अहंकार के लिए यह
सब किया जाता है!
पिछले
दिनों तेलंगाना में घटी एक बेहद क्रूर घटना में कथित तौर पर एक करोड़ रुपये की
सुपारी देकर एक पिता ने अपने दामाद की हत्या करवा दी। लड़की का पिता तथाकथित ऊंची
जाति का है, जबकि उनकी बेटी ने जिससे प्रेम विवाह किया
था, वह तथाकथित निचली जाति का था।
यह
सोचने की बात है कि करोड़ों रुपए खर्च करके एक पिता ने क्या हासिल किया? एक निर्दोष लड़के की हत्या, अपनी बेटी की
हंसती-खेलती ज़िन्दगी की तबाही और अपने लिए जेल की सलाखें! तो जिस 'प्रतिष्ठा' के लिए यह सब किया गया वो कहां है?
बहरहाल तो इस हत्यारे पिता और अन्य परिजनों पर हर कोई थूक ही रहा है
और खुद उनकी पीड़ित बेटी उनके खिलाफ न्याय के लिए डट कर खड़ी है!
इस
घटना के बारे में सुनते ही मुझे 'सैराट' फिल्म का ध्यान आया था। 2016 में रिलीज़ हुई नागराज
मंजुले की मराठी फिल्म 'सैराट' ने लगभग
इसी तरह की घटना को अपना विषय बनाया था, और इस फिल्म ने
दर्शकों की संवेदना को झकझोर कर रख दिया था। असल ज़िन्दगी में सैराट के यूं घटने
और लगातार घटते रहने से अधिक दुर्भाग्यपूर्ण क्या होगा!!
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