
शुतुरमुर्ग मुझे बेहद प्यारा जीव लगता है। पहली बार जब
मैंने शुतुरमुर्ग को देखा था, तो उसका चेहरा देखकर लगा
था कि वो इंसानों की तरह हंस रहा है!
पिछले हफ्ते त्रिशूर के एक चिड़ियाघर में
इस शुतुरमुर्ग को देखा। जो लोहे की सींखचों को अपनी नाज़ुक चोंच से बार-बार और
लगातार जैसे तोड़ने की नाकाम कोशिश कर रहा था। कैद में जकड़ा ये दौड़ने-भागने वाला
जीव बेहद दयनीय लग रहा था।
चिड़ियाघर देखना मुझे कभी भी अच्छा नहीं
लगता। वहां जाकर मासूम जानवरों को कैद में देखकर मन बहुत दुखी हो जाता है। इसलिए
मैं अक्सर वहां जाने से बचती हूं। कूदने-उछलने, उड़ने वाले
पशु-पक्षी चिड़ियाघर में बेहद उदास दिखाई देते हैं। लोगों का लोहे की जालियों के
पार से उन्हें घूरना, छेड़ना, शोर
मचाना उन बेजुबानों को कैसा लगता होगा, सोचकर ही मन पसीज
जाता है।
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