Monday 10 June 2019

गिरीश कर्नाड के निधन पर


गिरीश कर्नाड बीमार थे, इसकी मुझे बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी, इसलिए आज सुबह जब उनके जाने की खबर सुनी तो मैं स्तब्ध रह गयी! गिरीश कर्नाड रंगकर्म के क्षेत्र से जुड़ी एक ऐसी हस्ती थे जिनके नाम से भारत में पढ़ने-लिखने से सम्बन्ध रखने वाला शायद ही कोई अपरिचित हो। कन्नड़ भाषी गिरीश की दक्षिण भारत ही नहीं शेष भारत में भी जितनी ख्याति थी, वह किसी बड़ी प्रतिभा के बल पर ही संभव होता है। गिरीश ने नाटक लिखे, नाटकों में अभिनय किया, नाटकों का निर्देशन किया। उन्होंने कई हिन्दी और कन्नड़ फिल्मों में अभिनय किया, कुछ फिल्मों के लिए लिखा और कुछ फिल्मों का निर्देशन भी किया।
गिरीश कर्नाड की बड़ी खासियत ये थी कि वे कन्नड़ भाषा साहित्य के मर्मज्ञ भी थे। कन्नड़ फिल्मों से कन्नड़ साहित्य का रिश्ता कायम करने में भी उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। यू.आर.अनंतमूर्ति के बहुचर्चित उपन्यास संस्कार’ (1970) पर इसी नाम से बनी कन्नड़ फिल्म में मुख्य भूमिका निभाकर उन्होंने सिनेमा में अपने अभिनय की शुरुआत की थी। बाद में हिन्दी सिनेमा के दर्शकों ने भी इस सौम्य व्यक्तित्व वाले सहज अभिनेता को कई बेहतरीन फिल्मों में देखा; जिनमें निशांत’ (1975), ‘मंथन’ (1976) और स्वामी’ (1977) जैसी फ़िल्में शामिल हैं। उनके एक चर्चित कन्नड़ नाटक अग्निमुत्तू माले’, जो महाभारत की कथा से प्रेरित होकर बिल्कुल एक नयी दृष्टि से एक नयी तरह की कथा की सृष्टि है, को आधार बनाकर हिन्दी में अग्निवर्षा’ (2002) नाम से एक फिल्म भी बनाई गयी थी।
गिरीश कर्नाड उन संस्कृतिकर्मियों में शामिल थे जो देश में सांप्रदायिक सौहार्द और वैज्ञानिक चेतना (Scientific temper) के प्रति समर्पित थे और इसके लिए काफी मुखर भी थे। वे कट्टरपंथी हिन्दुत्व के मुखर आलोचक थे और इसलिए पिछले कुछ सालों में उन्हें बहुत परेशान भी किया गया। गिरीश कर्नाड का निधन सचमुच एक बड़ा 'शून्य' पैदा करेगा। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।

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