कश्मीर को अशांत
बनाने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी पाकिस्तान की सरकारों की है। इतिहास गवाह है कि
कश्मीरियों के विश्वास को सबसे पहले पाकिस्तान के सत्ताधारियों ने ही तोड़ा। और अब
भी वे आज़ाद कश्मीर के नाटक के नाम पर एक गुलाम कश्मीर को भोग रहे हैं। अगर POK
आज़ाद होता तो किस हक़ से इमरान खान पाकिस्तान के स्वंत्रता दिवस पर
वहाँ पाकिस्तान का झंडा फहराने गए थे? अपने ही संकल्प से
पीछे हटकर पाकिस्तान ने POK में बहुत सारे गैर कश्मीरियों को
योजनाबद्ध तरीके से बसाया हुआ है। कश्मीर से पाकिस्तानियों को इतना ही प्यार होता
तो वे अक्साई चीन का हिस्सा चीन को उपहार में नहीं दे देते। अब जब पाकिस्तान में
विपक्ष के नेता बिलावल भुट्टो और इमरान खान की पूर्व पत्नी का बयान आया है कि पहले
पाकिस्तान के सत्ताधारी श्रीनगर को पाकिस्तान में मिलाने की बात किया करते थे
लेकिन अब वो अपने POK को बचाने के लिए भी जूझ रहे हैं;
तो साफ़ हो जाता है कि पाकिस्तान किस निगाह से कश्मीर को देखता रहा
है। हे महानुभावों गरीबी, बेरोजगारी, अशिक्षा,
आतंकवाद से निपटो। मानवाधिकार की बहाली के लिए मन से प्रयास करो।
दोनों ही मुल्कों की सत्ता के लिए युद्धोंन्माद, सीमा विवाद
जैसे मुद्दे अपने ही देश की जनता के आवश्यक मुद्दों से ध्यान भटकाने की सबसे बड़ी
साजिश है।
कश्मीर
पर जोर-जबरदस्ती बंद होनी चाहिए। वहाँ पर मानवाधिकार को जिस तरह से ताक पर रख दिया
गया है,
वह बेहद तकलीफदेह है। यह भी ज़रूरी है कि सुप्रीम कोर्ट धारा 370 पर
एक संतुलित और संवेदनशील निर्णय दे। कश्मीरी आवाम को भी इस बात पर विचार करना
चाहिए कि कश्मीर की आज़ादी कोई झांसा तो नहीं है, जिसकी बदौलत
हमेशा के लिए अशांति और पिछड़ापन बरक़रार रखा जा सके; और
राजनीतिक रोटियाँ सिकती रहें। हम सब इसकी बहुत दर्दनाक कीमत चुकाते आ रहे हैं।
कश्मीरियों के आज़ादी के नारों में लम्बे समय से एक यह नारा भी सुना जाता है;
जिसमें कहा जाता है- ‘आज़ादी का मतलब क्या’
और जो मतलब बताया जाता है; वह “कश्मीरियत” तो कत्तई नहीं है! यह बात साफ़ होनी चाहिए
कि अब यह उप-महाद्वीप एक और “पाकिस्तान” के निर्माण का सदमा और घाव बर्दाश्त करने की स्थिति में नहीं है!
हम
एक धर्म-निरपेक्ष लोकतंत्र हैं। हमें न तो भारत पर कोई हिंदूवादी दावा मंजूर है, न कश्मीर पर कोई इस्लामी दावा। ये दोनों ही स्थितियाँ हमें नर्क की तरफ
धकेलने वाली स्थितियां हैं। आज़ादी का मतलब- इस देश में अमन, चैन और नागरिक
अधिकारों के साथ जीना है- यही हमारा ध्येय होना चाहिए और इसके लिए हमें मिलजुल कर कदम
से कदम मिलाकर संघर्ष करते रहना होगा।
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