Wednesday 1 June 2016

इस तरह की हूटिंग हमारी घोर क्रूरता की परिचायक है [प्रियंका - सौरभ संवाद]

प्रियंका : अभी सोशल मीडिया पर बिहार के बारहवीं के रिजल्ट से सम्बंधित कुछ वीडियो और खबरें बड़े पैमाने पर शेयर की जा रही हैं, कुछ बच्चों का मजाक बनाया जा रहा है, आपने भी देखा है । मेरे मन में पहला खयाल ये आया कि उन बच्चों पर क्या बीत रही होगी !
सौरभ : इस प्रसंग से गुजरते हुए यह खयाल आना ही चाहिए ! बारहवीं पास करने वालों की उम्र अमूमन 18-19 साल होती है । इतने बड़े पैमाने पर चल रही हूटिंग सह पाने के लिए ये उम्र बहुत नाजुक होती है । वैसे इस तरह कि हूटिंग सह पाने के लिए कोई भी उम्र नाकाफी ही होती है ।

प्रियंका : लोग कह रहे हैं कि ये बिहार की परीक्षा प्रणाली की पोल खोलने वाले वीडियो हैं । इस तरह से इस वीडियो शूट और इसकी शेयरिंग को उचित ठहराया जा रहा है ।
सौरभ : टॉपर्स से टीवी जर्नलिस्ट और अखबार वालों के इंटरव्यू की एक परंपरा चल पड़ी है । यह कितना उचित है, इस पर अलग से चर्चा हो सकती है । यह एक संयोग था, कि जो टॉपर्स थे, वे कुछ बुनियादी सवालों का जवाब नहीं दे पाये । दे पाते तो यह बड़ी खबर नहीं बनती । मेरा मानना है कि जब यह वीडियो शूट हो गया उसके बाद यह पत्रकार और उसके संस्थान के विवेक पर निर्भर करता था कि वह उसका प्रसारण करे या इसका उपयोग परीक्षा प्रणाली की गड़बड़ियों की तहकीकात में करे । इसका उपयोग एक कन्फिडेंशियल ‘क्लू’ की तरह किया जाना चाहिए था । मेरा भी मानना है कि बिहार में परीक्षा प्रणाली ही नहीं, पूरी की पूरी शिक्षा व्यवस्था ही बेहद बदहाली से गुजर रही है । हम इसके भुक्तभोगी रहे हैं । इस वीडियो का परिणाम अधिक से अधिक इस रूप में आएगा कि कुछ लोग निशाने पर आएँगे । यदि शिक्षा माफियायों की, इसमें कोई भूमिका है, तो खुद को बचाने के लिए उन्हें बहुत समय मिल जाएगा ।

प्रियंका : जो बच्चे ऑन कैमरा जवाब नहीं दे पा रहे हैं । इसके कई और भी कारण हो सकते हैं । जिसमें एक घबराहट भी है । मेरा खुद का अनुभव है कि लिखित परीक्षा की तैयारी साक्षात्कार के समय मेरे काम नहीं आती । मैं कई बार घबराहट में बहुत कुछ भूल जाती हूँ, जो बाहर आकर फिर से याद आ जाता है और बेहद अफ़सोस होता है । जबकि मैं ऑन कैमरा भी नहीं होती । बड़े से बड़े दिग्गज कलाकार भी कई बार कैमरे का सामना होने पर रिहर्सल में बार बार दोहराए गये डायलॉग भी भूल जाते हैं ।
सौरभ : ऐसा भी हो ही सकता है । यह अचानक से हुआ ‘वीडियो बाइट हमला’ ही होता है । बिहार के छोटे छोटे गाँवों,कस्बों या शहरों के किशोरों के लिए यह घबराहट की बात हो ही सकती है । लेकिन कई और अलग कारण भी हो सकते हैं । हो सकता है कि मूल्यांकन में लापरवाही बरती गयी हो । हो सकता है कि परीक्षा मे भारी कदाचार का या व्यवस्था के भ्रष्टाचार का मामला हो । यह भी हो सकता है कि कोई तकनीकी दिक्कत हुई हो ।

प्रियंका : तकनीकी दिक्कत मतलब मार्क्स का गलत डिस्प्ले?
सौरभ : हाँ, ऐसा कई बार हो चुका है । 1996 में मेरे बड़े भाई ने बिहार बोर्ड से दसवीं की परीक्षा दी थी । उस बार परीक्षा बहुत सख्ती से ली गयी थी । जब रिजल्ट आया तो भाई साहब पास नहीं थे । लोगों को लगा कि वे पढ़ने में मन नहीं लगाते होंगे इसलिए फेल हुए होंगे । लेकिन जब भाई साहब को पता चला कि उनकी कक्षा के बहुत कुशाग्र माने जाने वाले बच्चे भी फेल हैं, तो उन्हें लगा कि कुछ न कुछ गड़बड़ है । बाद में जाँच होने पर पता चला कि उनके स्कूल के सभी छात्रों के साथ यह हुआ था कि जिनके एक विषय में 72 अंक थे, उनका उलट कर 27 डिस्पले हो रहा था । इसी तरह 25 वालों का 52 । या फिर यह हुआ था कि मार्क्स का कोई एक डिजिट छूट गया था जैसे किसी का 69 हो तो 6 या 9 डिस्प्ले हो रहा था । चूँकि यह पूरे स्कूल का और जिले के एक प्रतिष्ठित स्कूल का मामला था तो जाँच में पता चल सका । व्यक्तिगत मामलों में पता भी नहीं चलता । तो इस तरह का भी मामला हो सकता है । वीडियो सार्वजनिक कर किसी को व्यक्तिगत रूप से प्रताड़ित करने के बजाय यह होना चाहिए था कि इन सब बातों की तहकीकात की जाती और सच तक पहुँचा जाता ।

प्रियंका : यह खुद पत्रकारों की योग्यता का भी मामला है । खबर बिकने वाले दौर में वे मसाला तैयार करने में लगे हुए हैं । विवेक और पत्रकारिता का रिश्ता तो जैसे खत्म ही हो गया है ।
सौरभ : बिल्कुल । आप अचानक से हिन्दी के कुछ पत्रकारों से बात कर के देखिये उनसे हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास से कुछ ऑबजेक्टिव सवाल पूछ लीजिए तो शायद ही जवाब दे पाएँ । गणेशशंकर विद्यार्थी, माखन लाल चतुर्वेदी जैसों के सम्बंध में वे शायद ही दस लाइन बोल सकें । लेकिन पत्रकार हैं । किसी पर टूट पड़ने का ‘जन्मसिद्ध’ अधिकार है उन्हें । पत्रकारिता पेशे की नैतिकता तो खैर ‘पुराने जमाने’ की बात हो गयी है ! बिहार की शिक्षा व्यवस्था बेहतर हो यह भला कौन चाहता है ? बिहार के सरकारी स्कूलों में दस-बारह हजार रुपये महीने की पगार पर शिक्षक पढ़ा रहे हैं । इनकी नियुक्ति प्रक्रिया और इस वजह से कई अयोग्य शिक्षकों की भर्ती एक समस्या है ही लेकिन इतनी कम पगार पर काम करने वाले क्या काम कर पाएँगे ? जनगणना में भी वही जाते हैं । चुनाव ड्यूटी भी उन्हीं की लगती है। राज्यसरकार के सर्वेक्षण करने भी उन्हें ही भेज दिया जाता है । यह जो कठिन परिस्थिति में उनका काम करना है यह पत्रकारों के लिए कभी बड़ी खबर नहीं होती !

प्रियंका : इस वीडियो से जो एक छवि बनती है कि बिहार में बिना पढ़े लिखे भी लोगों के नंबर आ जाते हैं, वहाँ के बच्चे बिना योग्यता डीयू, जेएनयू जैसे संस्थानों में आ धमकते हैं इसमें कोई सच्चाई है क्या ?
सौरभ : सच्चाई इसके ठीक उलट है । अब तो बिहार बोर्ड की परीक्षाओ में थोड़े ठीक ठाक नंबर आ भी जाते हैं, कुछ दिनों पहले तक तो बिहार बोर्ड नंबर देने में अपनी कंजूसी की वजह से ही जाना जाता था । कोई बहुत होनहार है तो भी डिस्टिंक्शन तक नहीं पहुँच पाता था । इस वजह से दिल्ली विश्वविद्यालय में जहाँ अंकों के आधार पर बी.ए में एड्मीशन मिलता है वहाँ की रेस में वे बहुत पीछे रह जाते थे । उन्हें या तो कम लोकप्रिय विषय लेना पड़ता था या कम लोकप्रिय कॉलेज उनके हिस्से आता था । दिल्ली विश्वविद्यालय का कटऑफ इतना बढ़ गया है कि आज भी यही स्थिति है । बिहार के जो छात्र दिल्ली विश्वविद्यालय से अच्छे विषयों में या अच्छे कॉलेजों में दिखते हैं वे अक्सर पब्लिक स्कूलों से या नवोदय और केन्द्रीय  विद्यालयों से पढ़े होते हैं, जहाँ सीबीएसई अथवा आइसीएसई बोर्ड है, या उनकी पढ़ाई बिहार से कहीं बाहर हुई होती है । जहाँ तक मेरी जानकारी है स्थिति यह थी कि बिहार के प्रतिष्ठित साइंस कॉलेज और पटना वीमेन्स कॉलेज तक में भी सीबीएसई बोर्ड के विद्यार्थी बाजी मार लेते थे और बिहार बोर्ड के गिने चुने टापर्स को ही यहाँ जगह मिल पाती थी । जेएनयू की बात अलग है वहाँ प्रवेश परीक्षा होती है । कठिन प्रवेश परीक्षा होती है । हाँ पिछड़े क्षेत्रों के छात्रों को कुछ अतिरिक्त प्वाइंट्स जरूर मिलते हैं, जिसकी प्रशंसा की जानी चाहिए । यहाँ बिहार बोर्ड के कई मेधावी विद्यार्थियों को प्रवेश मिला और उन्होंने बहुत बेहतर किया भी ।

प्रियंका : वीडियो का सोशल मीडिया पर इतना अधिक शेयर होना, इतनी अधिक क्रूरता से मजाक करना हमें खुद के भीतर झाँकने को भी मजबूर करता है, यह व्यवस्था की सड़ांध से अलग किस्म की और अधिक खतरनाक सड़ांध है !
सौरभ : हम सब के भीतर खतरनाक स्तर तक कुंठित हिंसा पल रही है । उसे अलग अलग रूप में हम बाहर निकाल रहे हैं । हम सबको क्रूर हास्य अधिक पसंद आने लगा है । इतना अधिक कि खुद बदहाल उत्तर प्रदेश वाले भी आत्मालोचन के बजाय बिहारियों पर हँसेंगे और आश्चर्यजनक रूप से ख़ुद को कम से कम उनसे बेहतर तो समझेंगे ही । हमें किसी भी चीज के सुधरने से कोई मतलब नहीं है । हम अधिक सम्वेदनशील होकर ‘बेवकूफ’ के खिताब से बचना चाहते हैं । हमें दोस्तों यारों के बीच इन्ज्वाय करना है,चिंतित और चिंतनशील भी दिखना है तो हमें क्या मतलब जो हमारी हरकतें किसी को गहरे अवसाद में भी धकेल दे !


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# Education system, Bihar Board, Problems of students of Bihar, Insensitive Society, Irresponsible Media, Exam Results,Scam 

1 comment:

  1. पत्रकारिता और नैतिकता में दूर तक कोई सम्बन्ध नहीं है. इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सिर्फ टी आर पी बढ़ाने के लिये न्यूज़ दिखती है.

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