पिछले दिनों चेन्नई जाने का संयोग बना । चेन्नई यात्रा से जुड़ी ये दोनों टिप्पणियाँ चैन्नई की दो झलकियाँ भर हैं । इन्हें यात्रा संस्मरण नहीं कहा जा सकता है ।
चेन्नई – 1
[05.08.2017]
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चेन्नई के मरीना बीच पर बनी एक कलाकृति |
तमिलनाडु
के लोगों के सड़कों पर उतरने के प्रभाव के बारे में तो सुन रखा था। लेकिन इसके
प्रभावी होने के कारणों को आज अपनी आंखों से देखने का मौका मिला।
मरीना
बीच तक जाने वाली एक सड़क का मरीना बीच से लेकर अगले कम से कम ढाई-तीन किलोमीटर का
हिस्सा पोस्टर और बैनर लेकर खड़े पुरुषों और महिलाओं से इस कदर अटा पड़ा था, कि उसके एक छोर से अगर आप देंखे तो वह समुद्र के समक्ष दूसरा समुद्र लग
रहा था। यह प्रदर्शन किस उद्देश्य के लिए हो रहा था, लिपिगत
अपरिचय की वजह से मुझे यह तो नहीं पता चल सका, लेकिन किसी
धरना प्रदर्शन या रैली में मैंने आजतक इतनी भारी भीड़ नहीं देखी थी! इन
प्रदर्शनकारियों के बीच से गुज़र कर मरीना बीच तक जाने की हमारी कोशिश इस तरह असफल
हुई कि किसी तरह रास्ता बनाकर लगभग एक-डेढ़ किलोमीटर जाने के बाद फिर से यत्न करके
इतनी ही दूरी तय कर वापस लौट आना पड़ा। क्योंकि आगे भीड़ इतनी सघन होती जा रही थी,
कि वापस लौटने के अलावा कोई विकल्प नहीं था।
मैंने
जितना समझा, चेन्नई एक ऐसा महानगर है, जो एक साथ महानगर और दक्षिण भारतीय गांव दोनों ही संस्कृतियों के गुण रखता
है। इस नगर में विकास और बदहाली भी एकसाथ दिखती है। जगह-जगह कूड़े की गंध से आप
परेशान हो सकते हैं और वहीं आपको दूसरी तरफ साफ-सुथरा समुद्र तट भी दिखेगा।
भाषागत
समस्याएं तो हैं लेकिन आप यहां आकर महसूस करेंगे कि जो हमारी हिन्दी है, वह हमारे देश में कहीं भी पूरी तरह अजनबी नहीं है। हिन्दी बोलने वाला आदमी
बिना किसी खास परेशानी के यहां के दुकानदारों, ड्राइवरों
वगैरह से संवाद स्थापित कर सकता है। आपको आश्चर्य हो सकता है कि इस शहर के मुख्य
हिस्से में आपको बहुत सारे ऐसे होटल और रेस्टोरेंट मिलेंगे जहां के मालिक और सहायक
बंगाल, उड़ीसा या असम के हैं। यहां तक कि कई तमिल होटल
मालिकों ने भी अपने सहायक इन्हीं राज्यों के रखें हैं। ये लोग धड़ल्ले से अपनी
क्षेत्रीय विशेषताओं के साथ हिन्दी बोलते हैं, और निश्चित
रूप से हिन्दी बोलने की उनकी यह विशेषता ही, तमिल होटल
मालिकों को अपने फायदे की लगती होगी!
चेन्नई – 2
[09.08.2017]
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चेन्नई स्टेशन के बाहरी हिस्से की तस्वीर |
ये
चेन्नई स्टेशन के बाहरी हिस्से की तस्वीर है। बाहरी हिस्सा तो खूबसूरत है ही, लेकिन जब आप इसके अंदर जाएंगे तो, उसकी खूबसूरती से
भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाएँगे। ये खूबसूरती इसकी सजावट में नहीं बल्कि इसकी
बनावट और व्यवस्था में मौजूद है। इसके ग्राउंड फ्लोर पर चलते हुए ही आप इसके सभी
प्लेटफॉर्म्स तक पहुंच सकते हैं, जो कई दृष्टिकोण से
सुविधाजनक और जरूरी है।
जिसे
सभी प्लेटफॉर्म्स के यात्रियों का कॉमन स्पेस कह सकते हैं, वह एक ही छत के नीचे एक बड़े दायरे में फैला हुआ परिसर है, जहाँ खाने-पीने के बहुत सारे छोटे-छोटे स्टाल हैं, जो
बेहद किफायती हैं। यहां साफ सुथरा वेटिंग रूम तो है ही, साथ
ही यात्रियों के बैठने के लिए कई जगहों पर सुव्यवस्थित कतारों में सैकड़ों
कुर्सियां लगी हुई हैं। इस तरह की व्यवस्था प्रायः हवाई अड्डों पर रहती है। चाहें
तो इन कुर्सियों पर बैठ कर आराम से इंतजार करें। वैसे मुझे अपने लिए यह परिसर
चहल-कदमी करते हुए समय बिताने के अधिक मुफीद लगा!
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