“वेणु गोपाल की कविताओं में विचार का पक्ष अधिक मुखर रहा है। मेरी समझ से इसका कारण उनकी स्पष्ट पक्षधरता है। नक्सल जैसी उग्रवामपंथी विचारधारा से सक्रिय तौर पर सम्बद्ध कवि की वैचारिक प्रखरता स्वाभाविक है। कविता को शोषण के विरूद्ध और साम्यवाद के पक्ष में इस्तेमाल करने की जो तकनीक प्रगतिशील कविता के दौर में विकसित हुई थी, नक्सल क्रांति के दौर में उसे पर्याप्त व्यावहारिक आधार मिला। हिन्दी साहित्य में वेणु गोपाल की पहली मुकम्मल पहचान इसी दौर के दायित्वबोध से आबद्ध, अभिव्यक्ति के भारी खतरे उठा सकने वाले कवि के बतौर हुई थी।”
(मासिक पत्रिका ‘अक्षरपर्व’ के दिसम्बर'2017 अंक में प्रकाशित)
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