Wednesday, 9 May 2018

ओमेरटा देखने के बाद

हंसल मेहता की पिछली फिल्म 'सिमरन' को जो लोग उनकी फिल्म समझ कर देखने गए थे, उन लोगों को बहुत निराशा हाथ लगी थी। लेकिन 'ओमेरटा' देखने वालों को बेशक इस बात का सुकून होगा कि वे हंसल मेहता की फिल्म ही देख रहे हैं।
इस फिल्म के साथ हिन्दी सिनेमा के दर्शकों को दो तरह की दिक्कतें हो सकती हैं, एक तो यह कि इस फिल्म के अधिकांश हिस्से में संवाद की भाषा अंग्रेजी है और दूसरी यह कि यह फिल्म वास्तविक जीवन के जिस किरदार पर केन्द्रित है उससे खुद को जोड़ पाने में तमाम भारतीय दर्शकों को समस्या हो सकती है। लेकिन यदि आप गंभीर सिनेमा में दिलचस्पी रखते हैं तो यह दोनों ही समस्याएं आपके लिए बाधा नहीं बनेंगी।
युवा पीढ़ी के लिए यह एक देखने लायक फिल्म है, जो उनके सोच विचार और व्यवहार के स्तर पर सकारात्मक असर डालेगी। इस फिल्म में विषय चयन से लेकर प्रस्तुति तक में बहुत मेहनत दिखाई देती है और इन दोनों ही स्तरों पर दर्शक वर्ग की रुचि के खयाल से फिल्मकार ने एक हद तक खतरा उठाया है।
चिंता का विषय यह है कि इस फिल्म को पर्याप्त संख्या में दर्शक नहीं मिल रहे हैं। हंसल मेहता ने अपने एक साक्षात्कार में कहा है कि सिनेमाघर के मालिकों ने इस फिल्म को जो समय दिया है वह दर्शकों के लिए सुविधाजनक समय नहीं है, इस वजह से भी इस फिल्म को कम दर्शक मिल रहे हैं। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अगर यह फिल्म अपनी लागत नहीं निकाल पाई तो स्थिति उनके लिए बहुत चुनौतीपूर्ण हो जाएगी!
मेरे खयाल से अच्छी फिल्मों के कद्रदानों को 'ओमेरटा' देखने के लिए सिनेमाघरों तक जाना चाहिए ताकि हंसल मेहता इस तरह की फिल्में बनाने का साहस करते रह सकें और अच्छी फिल्में बनाने वाले अन्य फिल्मकारों की भी हिम्मत बढ़े।

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