Sunday, 28 September 2014

भगत सिंह हममें हमारे घरों में हो


भगत सिंह आज ही के दिन 1907 में जब पैदा हुए होंगे तब उनके परिवार वालों ने कहाँ सोचा होगा कि उनका यह बेटा एक दिन इतना महान बन जायेगा कि भारत की आने वाली नस्लें उसकी वीरता और राष्ट्र प्रेम की मिसालें देंगी । भगत सिंह पर बनी फ़िल्में देखते हुए, मुझे रौंगटे खड़े होने के वास्तविक अनुभव हुए हैं । कुछ देर के लिए खुद को भूल कर उसी दौर में चली जाती हूँ, भगत सिंह जैसा बनने की इच्छा होती है । लेकिन यह इच्छा बहुत देर तक नहीं रहती । कभी-कभी सोचते हुए खुद पर शर्म आने लगती है कि मेरी उम्र तक भगत सिंह ने वो सब कर दिया जिसकी भविष्य में भी अपने लिए कल्पना तक कर सकने की ताक़त मुझमें नहीं है । भगत सिंह के घरवालों के बारे में सोचती हूँ । भगत सिंह के बलिदान से कमतर नहीं है उनका बलिदान । 
भगत सिंह को भगत सिंह बनाने में उनके माता-पिता, चाचा और अन्य परिवार वालों की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी । यह कहावत यूँ ही नहीं बनी कि लोग चाहते हैं कि भगत सिंह उनके पड़ोसी के यहाँ पैदा हो । भगत सिंह के लेख -मैं नास्तिक क्यों हूँ’ को पढ़ते हुए, भगत सिंह के आत्मविश्वास, बुद्धिमता और तार्किक स्वभाव से परिचित होने का अवसर मिलता है । आज मैं इसे पढ़कर समझने की कोशिश कर रही हूँ । भगत सिंह का संक्षिप्त जीवन कितना विराट है । भगत सिंह और उनके घर वालों के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही है कि हम खुद में उन जैसा चरित्र विकसित करने का प्रयास करें, अपने घरों में भगत सिंह को पलने-बढ़ने दें । कहीं किसी में भगत सिंह दिखाई दे तो उसे हतोत्साहित करने के बजाय उसके साथ खड़े हो जाएँ ।


 # Bhagat Singh, Main Nastik Kyon Hun, Remembering Bhagat Singh

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