दोनों फिल्मों की
विषयवस्तु एक है । एक लड़की का कई बार शादी करना और अगली सुबह माल-मत्ता ले कर फरार
हो जाना । ‘डॉली की डोली’ फिल्म में जहाँ इस दुल्हन का नाम ‘लुटेरी दुल्हन’ दिया
गया है वहीं ‘आर एस वी पी’ के समीक्षकों ने उस फिल्म की
समीक्षा में दुल्हन को ‘Runway Bride’ (भगौड़ी दुल्हन) कहा है ।
‘आर एस वी पी’ फिल्म
11 अक्टूबर 2013 को रिलीज़ हुई थी । इसके निर्देशक विजय कुमार अरोड़ा हैं । इसकी
कहानी वेद प्रकाश और विजय कुमार ने लिखी है । इस फिल्म में मुख्य भूमिका नीरू
बाजवा, हरीश वर्मा, राजपाल यादव, राणा रणबीर आदि ने निभाई
है ।
25 जनवरी 2015 को
रिलीज़ हुई अभिषेक डोगरा निर्देशित फिल्म ‘डॉली की डोली’ की कहानी उमाशंकर सिंह ने
लिखी है । इस फिल्म में मुख्य भूमिका में हैं – सोनम कपूर, राजकुमार राव, पुलकित
शर्मा और वरुण शर्मा आदि ।
‘आर एस वी पी’ फिल्म पंजाबी फिल्म है तो वहीं ‘डॉली की डोली’ भी पंजाबी प्रभाव लिए हुए है । ‘आर
एस वी पी’ में दुल्हन (नीरू बाजवा) का साथ
देने वाले तीन लोग खुद को माता-पिता, और भाई के रूप में प्रस्तुत करते हैं, जो कि
वे होते नहीं है । ‘डॉली की डोली’ में भी दुल्हन (सोनम कपूर) का साथ देने वाले खुद को क्रमशः इसी रूप में
प्रस्तुत करते हैं ।
‘आर एस वी पी’ की
दुल्हन भी अपने दूल्हों को दूध में नशीली दवा पिलाकर ही बेहोश करती है और ‘डॉली’
का भी यही तरीका है । दोनों ही अपने ‘शिकार पतियों’ को शादी की रात भी हाथ तक नहीं
लगाने देती न ही उससे पहले । दोनों ही फिल्मों में वैसे तो कई दूल्हे शिकार बने
हैं लेकिन मुख्य भूमिका में तीन ही लड़के हैं [‘डॉली की
डोली’ में दुल्हन तीसरे लड़के का माल-असबाब भले ही लेकर नहीं
भागती लेकिन अगली सुबह उसे भी छोड़कर भागती जरूर है।] । दोनो
फिल्मों में दो बेवकूफ टाइप के लड़के हैं, जिन्हें बस दुल्हन को ‘पाने’ की इच्छा
है । जिन्हें किसी और लड़की ने शायद कभी घास नहीं डाली । एक दूल्हा जिसका किरदार
‘आर एस वी पी’ में राजपाल यादव ने निभाया है और ‘डॉली की डोली’ में वरुण शर्मा ने
निभाया है, इन दोनों को ही अपने पैसे या गहने खोने का उतना मलाल नहीं है जितना इस
बात का कि उन्हें ‘मनु’ या ‘डॉली’ के साथ ‘सुहाग रात’ मनाने का मौका नहीं मिल सका ।
अब तक मेरी स्मृतियों
में देखी गयी जितनी भी पंजाबी फ़िल्में हैं उनमें अधिकतर फिल्मों पर मैंने बॉलीवुड
की फिल्मों का प्रभाव देखा है । बल्कि कई पंजाबी फिल्मों की तो विषयवस्तु ही पूरी
तरह से बॉलीवुड फिल्मों से ली गयी होती है । पहली बार मुझे इसके उलट आभास हुआ ।
बहरहाल दोनों फ़िल्में
बिल्कुल एक सी ही हैं ऐसा नहीं कहा जा सकता । दोनों फिल्मों मे कई रचनात्मक अंतर
हैं । दोनों के अंत भी अलग-अलग हैं । ‘आर एस वी पी’ की
दुल्हन को उससे पहले धोखा खाए हुए दूल्हे (हरीश वर्मा) से प्यार हो जाता है, और
अंत में वह उसके साथ भाग जाती है । वहीं ‘डॉली की डोली’ की नायिका ऐसी ‘हेप्पी एंडिग’ के लिए प्रस्तुत नहीं होती । एक अंतर
यह भी है कि ‘आर एस वी पी’ की दुल्हन अपने अतीत में कहीं प्रेम में धोखा खायी हुई
नहीं है जबकि ‘डॉली की डोली’ की दुल्हन का अतीत प्रेम में धोखा खायी लड़की का है
जिसे मजबूरन ये काम करना पड़ा और अब वो इस काम में इतना आनंद महसूस करने लगी है कि
वो और कुछ कर ही नहीं सकती ‘और कुछ’ हो ही नहीं सकती । और धोखा देने वाले अपने प्रेमी से भी अंत
में वह उसके घर से भागकर बदला लेती है । फिल्म के इस अंत में समीक्षकों से प्रशंसा
बटोरने का सामर्थ्य है । स्त्री मुखर अंत के लिए इस फिल्म को सराहा भी जा रहा है ।
मेरा ध्यान जिन बातों
की और गया हो सकता है कई और लोगों का भी गया हो । मेरी जानकारी में अबतक किसी ने
इन दोनों फिल्मों की समानता पर बात नहीं की है । लेकिन ‘डॉली की डोली’ फिल्म देखते
हुए मैं खुद को इस आभास से मुक्त नहीं कर पायी कि यह दोहराव है । फिल्म का कथ्य
मुझे नया लग ही नहीं सका । मैंने ‘आर एस पी वी’ नहीं देखी होती तो मेरी
प्रतिक्रिया इससे एकदम विपरीत होती । फ़िल्म की कहानी सुनाना या उसकी समीक्षा करना
मेरा उद्देश्य नहीं है । मेरा उद्देश्य अपने उस अनुभव को साझा करना है जो फ़िल्म का
ट्रेलर देखने से लेकर पूरी फ़िल्म देखने के दौरान होता रहा । संभव है जो दोहराव मेरी निगाह में खटकते रहे वे
संयोग मात्र हों । संभव है कि ‘डॉली की डोली’ के क्रियेटिव ग्रुप में से किसी ने ‘आर एस वी पी’ देखी ही न हो । मेरे ख्याल से यदि
उन्होंने यह फिल्म देखी होती और उसका प्रभाव ग्रहण किया होता तो निश्चित रूप से
इसका उल्लेख करते । कई बार इत्तेफ़ाकन भी ऐसा हो जाता है ।
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