Thursday 3 September 2015

चप्पलों की मरम्मत के क्रम में

अक्सर मेरी चप्पलें चलते-चलते रास्ते में टूट जाया करती हैं, और फिर चप्पल हाथ में उठाये मुझे पूरा रास्ता नंगे पाँव तय करना पड़ता है । टूटी हुई चप्पलें मरम्मत करवा कर कुछ और दिन तक पहनने लायक हों तो मैं उसे मरम्मत के लिए जरूर ले जाती हूँ । मेरे विश्विद्यालय से चार-पाँच कि.मी दूर लिंगमपल्ली बाज़ार है । रोजमर्रा की जरूरतों के कुछ सामान खरीदने के लिए मैं वहाँ जा रही थी तो एक जोड़ी टूटी चप्पल भी झोले में साथ ले गयी । ऑटो रिक्शा के रुकने की जगह से कुछ कदमों पर ही सड़क किनारे कुछ मोची बैठते हैं । लिंगमपल्ली बाजार जाना हो तो उस जगह से अक्सर गुजरना होता है । सामान खरीद कर लौट रही थी तो थोड़ी-बहुत सांझ घिर आयी थी । मोचियों के बैठने वाली जगह पर पहुँची । 
अपने खयालों से बाहर आकर जो देखा वैसा देखने का वह मेरा पहला अनुभव था । किसी पुरूष मोची की जगह वहाँ एक अधेड़ महिला बैठी थी । इससे पहले सड़क किनारे की अस्थाई दुकानों में महिलायों को अक्सर चाय, पकौड़ियाँ, खिलौने या फलों जैसी चीजें बेचते देखा था । मैं खुश भी थी और आश्चर्यचकित भी । अपनी चप्पल उन्हें सौंप कर मैं कुछ देर तो उन्हें काम करते हुए चुपचाप देखती रही । फिर मैंने उन्हें टोका ‘किसी औरत को मोची का काम करते हुए, मैंने पहली बार देखा है ।’ उन्होंने एक बार चेहरा ऊपर उठा कर मेरी तरफ देखा और फिर नीचे कर अपने काम में जुट गयीं । मुझे थोड़ा अटपटा लगा कि, उन्होंने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया और प्रतिक्रिया में उनके चेहरे पर कोई भाव भी नहीं आया ! फिर मुझे लगा शायद वे मेरी बातों को नहीं समझ पायीं होंगी । मैंने सोचा यह भी हो सकता है कि वे हिन्दी न जानती हों । कई तेलुगु मातृभाषी हिंदी बोल और समझ नहीं पाते हैं । मैं यह सब सोच ही रही थी कि चेहरा नीचे किये चप्पल गांठते हुए ही उन्होंने सहज सा जवाब दिया ‘मजबूरी है, क्या कर सकते हैं ! करना पड़ता है ।’ मैंने उन्हें कहा- ये बहुत अच्छी बात है । आपके पास हुनर है और आप उस हुनर का इस्तेमाल कर रही हैं ।मुझे किसी औरत को हुनर का काम करते देख कर सचमुच बहुत अच्छा लग रहा था । सिर्फ दो वाक्यों के संवाद के बाद उन्हें मुझसे आत्मीयता स्थापित करने में कोई परेशानी नहीं हुई । उन्होंने कहा – मेरा पति दारू पीता है जितना भी कमाता है सब दारू में उड़ा देता है । तो घर का खर्च चलाने के लिए मुझे ये करना पड़ता है । सारा घर मेरे खर्चे से ही चलता है वो कुछ नहीं देता । इस देश की न जाने कितनी कामगार औरतों का दर्द उनके मुँह से बयां हो रहा था । लगभग एक सी कहानी -पति का दारू पीना, पत्नी को पीटना यहाँ तक कि पत्नियों की कमाई तक छीन लेना !
फिर मैंने उनसे पूछा ‘कब से यहाँ बैठती आप’? उन्होंने जवाब दिया ‘पिछले चार साल से’ । मुझे अफसोस हुआ कि पिछले दो वर्षो से इस बाज़ार में इतनी बार आयी हूँ, मेरा इससे पहले कभी इधर ध्यान नही गया !! मैंने उनसे पूछा- आपके पति क्या करते हैं ?’ उन्होंने बताया -वो भी यही काम करते हैं, उधर पिछली गली में ।बच्चों के बारे में उन्होंने बताया- एक बेटा है जो जॉब करता है लेकिन मैं उससे कोई पैसा नहीं लेती । वह बड़ा हो चुका है तो उसके अपने खर्चे हैं । वह हमारे साथ ही रहता है । यह सब बताते हुए उस महिला के चेहरे पर कोई दुःख नहीं था । उनकी बातचीत के ढंग और पहनावे तक से गरिमा झलक रही थी । कहीं भी दयनीयता नहीं थी । पूरी तल्लीनता के साथ वे अपने काम में जुटी हुई थीं । टूटी हुई चप्पल टंक गयी तो मैंने सोचा कि दूसरे पैर की चप्पल की भी सिलाई करवा लेती हूँ, न जाने कब ये भी धोखा दे जाए । मैंने उनसे कहा दोनों की पूरी सिलाई का क्या लेंगी तो उन्होंने चालीस रुपए बताया । मैंने कहा नहीं चलीस तो बहुत ज्यादा हैं आप तीस लीजिये । बिना ना-नुकुर के वे मान गयीं और चुपचाप जुट गयीं । मेरे मन में आया कि अभी एक मामूली सनस्क्रीन और बॉडी लोशन पर मैं चार सौ रूपए खर्च कर आई हूँ वहां तो मैंने कम करने के लिए नहीं कहा ! क्योंकि वहाँ कम नहीं हो सकता ये मैं जानती थी । लेकिन यहाँ ये औरत जो कड़ी धूप से लेकर देर शाम तक बैठी-बैठी मेहनत कर रही हैं, उनसे मैं दस रूपए कम करने के लिए कह रही हूँ । मुझे अपनी सोच पर ग्लानि हुई । दुःख हुआ कि मैंने उन्हें दस रूपए कम करने के लिए क्यों कहा । मैंने अपने पर्स से तीस की जगह चालीस रुपए ही निकाले और चप्पल गंठवाने के बाद उन्हें दिए, तो उन्होंने खोल कर गिना भी नहीं कि मैंने कितने रुपए दिए । वे लोग कितने सरल, निश्छल और संवेदनशील होते हैं, जो थोड़ी देर की आत्मीय बातचीत के बाद ही यह सोचने लगते हैं कि किसी के दिये हुए पैसे गिनना आत्मीयता का अपमान है ।

चलते-चलते आग्रहपूर्वक मैंने उनकी तस्वीर खींच ली । ये सोचकर ही वहां से उठी कि अब जब भी इधर से गुजरूंगी इनसे मिलते हुए ही जाउंगी । मैं खुद को सकारात्मक उर्जा से लबरेज महसूस कर रही थी । मैं एक अच्छी इंसान, एक आत्मनिर्भर औरत से मिलकर लौट रही थी । 

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4 comments:

  1. नशीले पदार्थों ने समाज और रिस्तों को तहस-नहस कर रख दिया है।

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