Saturday, 9 September 2017

वे गले तक ज़िन्दगी में डूबना चाहते थे!

एम.ए के दिनों में पाश (09 सितम्बर 1950 - 23 मार्च 1988) से परिचय हुआ था, उनकी कुछ कविताएँ हिन्दी में पढ़ी सुनी, लेकिन उन्हें जब गंभीरता से पढ़ना चाहा तब पता चला कि वे पंजाबी भाषा के कवि हैं। (यह मेरे लिए फक्र करने की बात थी!)
हिन्दी में उन्हें पढ़ते हुए कभी लगा ही नहीं था, कि अनूदित कविताएँ पढ़ रही हूँ! बल्कि इसके विपरीत जब उन्हें पंजाबी में पढ़ने की कोशिश करती हूँ, तो वे कविताएँ मुझे अनूदित लगती हैं।
मुझे लगता है, एक सच्चे, जुझारू और ईमानदार व्यक्ति की रचनाएँ जिस भाषा में भी अनूदित कर दी जाएँ, वह उसी भाषा की लगने लगती हैं। यह संयोग था कि मैंने पाश को पहले हिन्दी में पढ़ा! निसंदेह इसमें एक बड़ी भूमिका चमनलाल सहित उन सभी अनुवादकों की भी है, जिन्होंने बड़े मनोयोग से पाश की कविताओं का अनुवाद कर उन्हें हिंदी पाठकों के समक्ष रखा।
पाश यदि जीवित होते तो आज अपने जीवन के 68वें साल में प्रवेश करते। वे बेशक एक लम्बा जीवन नहीं जी सके, लेकिन उन्होंने एक बड़ा जीवन जिया! इसलिए तो वे हमारे दिलों में आज भी जिंदा हैं। 

पाश की कविता अब विदा लेता हूँ’ (अनूदित) से कुछ अंश 
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"धूप की तरह धरती पर खिल जाना
और फिर आलिंगन में सिमट जाना
बारूद की तरह भड़क उठना
और चारों दिशाओं में गूँज जाना-
जीने का यही सलीका होता है
प्यार करना और जीना उन्हे कभी नहीं आएगा
जिन्हें ज़िन्दगी ने बनिया बना दिया"
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"सब भूल जाना मेरी दोस्त
सिवा इसके कि मुझे जीने की बहुत इच्छा थी
कि मैं गले तक ज़िन्दगी में डूबना चाहता था
मेरे भी हिस्से का जी लेना
मेरी दोस्त
मेरे भी हिस्से का जी लेना।"

#PASH #BIRTHDAY #23MARCH #PUNJABI KAVI #CHAMANLAL

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