(1)
08.01.2018
अभी
पुणे विश्वविद्यालय के एक सेमिनार में भागीदारी के लिए एक रजिस्ट्रेशन फॉर्म भर
रही थी,
जहाँ नाम के पीछे अनिवार्य रूप से प्रिफिक्स लगाना था और विकल्प में
Mr, Ms और Mrs में से एक को चुनना था।
यानी यह कि औपचारिक डॉक्यूमेंट्स में भी सिर्फ प्रिफिक्स से यह पता किया जा सकता
है कि स्त्री विवाहित है या अविवाहित! लेकिन यह बात Mr पुरुषों
पर लागू नहीं होती!
हिन्दी
में भी इसे क्रमशः श्री, सुश्री और श्रीमती लिखा जाता
है। मेरे खयाल से Ms या Mrs कोई एक
प्रिफिक्स ही विवाहित-अविवाहित सभी स्त्रियों के लिए होना चाहिए। नहीं तो विवाहित
पुरुषों के लिए भी कोई अलग प्रिफिक्स होना चाहिए। ऐसा नहीं होना सीधे लैंगिक
भेदभाव से जुड़ता है और दुर्भाग्य से बड़े-बड़े प्रतिष्ठित अकादमिक संस्थान भी इस फॉर्मेट
का अनुसरण करते हैं।
(2)
17.01.2018
मध्यप्रदेश
लोकसेवा आयोग ने असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्तियाँ निकाली हैं। इसका ऑनलाइन आवेदन
पत्र अभी देख रही थी। इसमें एक कॉलम में आवेदक को 'विवाह
का विवरण' भरना है। जिसमें विवाह की दिनांक सहित कई प्रश्न
हैं, जैसे : क्या आवेदक महिला विधवा/ तलाकशुदा/ परित्यक्ता
है', 'क्या आवेदक महिला के एक से अधिक पति जीवित हैं',
इसके अतिरिक्त पति का नाम, पति का उपनाम,
पति का जन्मस्थान, पति की राष्ट्रीयता,
ऐसे तमाम प्रश्न जिनका इनसे कोई सम्बन्ध नहीं होना चाहिए, पूछे जा रहे हैं।
इसमें
दो चीज़ें जो मुझे बुरी तरह अखर रही हैं, उनमें पहली
है कि ऐसा विवरण किसी भी व्यक्ति की निजता का हनन है और किसी भी नौकरी के आवेदन के
लिए ऐसे विवरण मांगे जाने का कोई औचित्य नहीं है! दूसरी बात जो बेहद बुरी लगी वो
यह कि यहाँ पूछे जा रहे यह सभी सवाल केवल महिला आवेदकों के लिए हैं! यही प्रश्न
पुरुष आवेदकों से क्यों नहीं पूछे जा रहे कि 'क्या आवेदक
विधुर/ तलाकशुदा/ परित्यक्त है' या कि क्या आवेदक की एक से
अधिक पत्नियां जीवित हैं'? आवेदक की पत्नी का नाम, जन्मस्थान आदि' क्या है।
राज्य
सरकार की किन्हीं नौकरियों में ऐसे प्रश्नों का पूछा जाना बेहद शर्मनाक है, यह एक साथ निजता के हनन और लैंगिक भेदभाव दोनों का प्रश्न है।

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