Thursday, 25 January 2018

पद्मावत : सिनेमा हॉल में भी कायम रही सिरदर्दी

'पद्मावत' की वजह से इतने दिनों से जो सिरदर्दी मची हुई थी, वह कम से कम मेरे लिए तो सिनेमा हॉल के भीतर भी कायम रही! खुद संजयलीला भंसाली की 2015 में रिलीज़ हुई 'बाजीराव मस्तानी' की तुलना में भी यह फिल्म मुझे बेहद कमज़ोर लगी‌।
मेरे इस नज़रिये से सभी सहमत हों, यह ज़रूरी नहीं, लेकिन इस बात से सभी ज़रूर सहमत होंगे कि राजपूतों की आन-बान और शान को स्थापित करने में इस फिल्म में एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया गया है। देखने वालों को इस बात पर ताज्जुब होगा कि करणी सेना वाले और कई अन्य राजपूत संगठन विरोध आखिर कर किस बात का रहे थे! जिस तरह से धारणा बनाई जा रही थी, मामला इससे ठीक उलट है। राजपूतों का ऐसा महिमा मंडन तो बिरले ही किसी फिल्म में हुआ होगा। 
एक और बात, मेरा खयाल है कि इस फिल्म को संघ समर्थक निश्चित ही सकारात्मक रूप से ग्रहण करेंगे!

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