
एक
पत्रकार के बतौर कुलदीप नैयर आज़ाद भारत के निर्माण से लेकर अब तक के उतार-चढ़ाव
के मुखर साक्षी रहे। सक्रिय पत्रकारिता की इतनी लम्बी यात्रा बिरले ही किसी के
हिस्से आती है। विभाजन की त्रासदी झेलने वाले परिवार का एक नवयुवक जब पंजाब से
उखड़कर दिल्ली पहुंचा था, तब शायद उसको भी यह अनुमान
नहीं होगा कि वह एक दिन भारतीय पत्रकारिता के दिग्गजों में शुमार किया जाएगा।
भारतीय पत्रकारिता को दिशा देने में जिन लोगों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है,
कुलदीप नैयर उनमें से एक हैं।
पत्रकारिता
की दुनिया में जब कद बहुत बड़ा हो जाता है और बड़े-बड़े मिनिस्टरों तक सीधी पहुंच
हो जाती है, उसके बाद पत्रकारिता के मूल्यों को बचाए
रख पाना बहुत कठिन हो जाता है, लेकिन कुलदीप नैयर ने इसे
संभव बनाया। प्रेस की आज़ादी के लिए वे आजीवन मुखर रहे और इमरजेंसी के दौरान अपनी
इसी प्रकृति के कारण वे इंदिरा गांधी के कोपभाजन बने और उन्हें जेल भी जाना पड़ा।
कुलदीप
ने कई महत्वपूर्ण किताबें लिखी हैं, जिनकी मदद
के बिना आज़ाद भारत के राजनीतिक इतिहास को अच्छी तरह नहीं समझा जा सकता। उनके कॉलम
देश की विभिन्न भाषाओं में छपने वाली अस्सियों पत्र-पत्रिकाओं में छपा करते थे!
हाल-हाल तक वे सार्वजनिक गोष्ठियों और प्रतिरोध सभाओं या जलसों में हिस्सा लेते
रहे।
उनका
व्यक्तित्व मुझे बेहद प्रभावित करता था। मुझे जो उनकी सबसे बड़ी खासियत लगती थी वो
यह कि पत्रकारिता के शीर्ष पर होने या वरिष्ठतम होने का कोई अहंकार उन्हें छू भी
नहीं पाया था, वे बेहद सहज इंसान थे और कहीं भी उन्हें
सुनने पर साफ पता चलता था कि उनके भीतर वो पंजाबियत उम्र भर बरकरार रही, जिसे साथ लिए कम उम्र में ही उन्हें पंजाब छोड़ देना पड़ा था!
95 वर्ष की आयु में आज उनका निधन हो गया। भारतीय पत्रकारिता के इतिहास पर
जब-जब चर्चा होगी, कुलदीप नैयर का नाम बहुत ही अदब से लिया
जाएगा। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।
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