मेरी पीढ़ी के लोग जब से पैदा हुए थे, महाशय
धर्मपाल गुलाटी जी को MDH मसालों के विज्ञापन में देखते आ
रहे थे। महाशय जी की खास बात यह थी कि मैंने बचपन से लेकर आज तक उनको वैसा का वैसा
ही देखा है।
पिछले कई सालों से उनके
देहांत की अफवाहें बीच-बीच में उड़ती रही हैं; लेकिन हर बार हर अफवाह को वे
झूठा साबित कर देते थे; लेकिन इस बार ऐसा ही नहीं हुआ।
कोरोना से तो वे जंग जीत गए; लेकिन उसके बाद दिल का दौरा
पड़ने से आज सुबह उनका देहांत हो गया।
महाशय धर्मपाल का जीवन
प्रेरणादायक रहा है। उनका जीवन वास्तव में शून्य से शिखर तक की यात्रा का एक बड़ा
उदाहरण है। भारत विभाजन के बाद लुटे-पिटे लगभग खाली हाथ सीमा पार कर भारत पहुँचे
लोगों में से वे भी एक थे। शुरूआती दिनों में तांगा चलाया। बाद के दिनों में सड़क
किनारे एक खोखा लगाकर मसाले बेचे और फिर ऐसा दौर भी आया जब उन्हें मसालों का
शहंशाह कहा जाने लगा। उनके ब्रांड का नाम एमडीएच यानी 'महाशयां
दी हट्टी' मसाले के उनके शुरूआती कारोबार से ही निकला नाम
है। उनके बारे में एक विशेष बात यह भी है कि जीवन के लगभग अंतिम समय तक वे अपने
ऑफिस पहुँचते रहे और कामकाज देखते रहे। शानदार और सक्रिय लम्बी पारी खेलकर विदा
हुए मसालों के शहंशाह को हार्दिक श्रद्धांजलि।
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