बचपन से ही
कुछ गीत ज़ुबान पर चढ़ गए थे । यह गीत कितने गहन अर्थों और संवेदनाओं को अपने भीतर समेटे हुए हैं यह धीरे-धीरे समझ में आया । ‘नन्हें मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है’ (बूट पालिश), ‘मेरा जूता है जापानी’ (श्री 420), ‘है प्रीत जहां की रीत सदा’
(उपकार), ‘प्यार किया तो डरना क्या’ (मुगले-आज़म), ‘कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे’ (पूरब और पश्चिम) जैसे अनेक गीत मेरे मन और परिवेश में ग़ोया बजते
ही रहे हैं । विद्यालयों में गायी जाने वाली ‘ऐ
मालिक तेरे बंदे हम’ (दो आंखें बारह हाथ), ‘हमको मन की शक्ति देना’ (गुड्डी), ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता’ (अंकुश) जैसी प्रार्थनाएं, फिल्मों के ही गीत हैं, यह बहुत
बाद में जाकर पता चला ।
साहित्य में मेरी दिलचस्पी की शुरूआत ही सिनेमा के गीतों के माध्यम से हुई थी, यह
मेरी दृढ़ मान्यता रही है । लेकिन जब विधिवत रूप से साहित्य अध्ययन में जुटी तब यह जानना निराशाजनक था कि ये गीत
साहित्य और साहित्यिक आलोचना की दुनिया में चिर वर्जित रहे हैं । इन गीतों की
हिन्दी साहित्य के इतिहासों में एक-आध अपवाद को छोड़ दें तो कहीं चर्चा तक नहीं
मिलती है । मतलब साफ है कि सिनेमा के इन गीतों को साहित्य नहीं समझा जाता जबकि ‘गीत’ साहित्य की एक
महत्वपूर्ण विधा रहा है । यानि यह समझा और समझाया जाता रहा है कि यदि कोई गीत
सिनेमा के लिए नहीं लिखा गया हो तो वह साहित्य है लेकिन सिनेमा का हिस्सा बनते ही वह साहित्य नहीं रह जाता !!

हिन्दी सिनेमा के गीतों के साहित्यिक महत्व पर मैंने एम.फिल. शोधकार्य किया है
। हिन्दी विभागों में इस तरह के शोध प्रस्तावों को स्वीकृति मिलने में जो कठिनाइयाँ आती
हैं, वह अलग से एक शोध का विषय है । फ़िलहाल शोध कार्य पूरा हो चुका है । जब कभी मन में आएगा इस विषय पर लिखती रहूँगी । हिन्दी सिनेमा के गीतों की यात्रा ,
उनके साहित्यिक महत्व और गीतकारों के रचनात्मक संघर्षों पर बात करते हुए जब-तब
यहाँ हाज़िर हो जाउंगी । बहरहाल इस एक गीत को सुनिए और सोचिए कि अब तक आपका जिन महत्वपूर्ण
पद्य रचनाओं से परिचय रहा है उनसे इसका महत्व क्या रत्ती भर भी कम है !!
# Songs of Hindi Cinema, Cinema/Film and Literature, Literary importance of Hindi film songs
यही लेख अापका आज जनसत्ता में पढ़ा। बहुत सुन्दर। लिखते रहें।
ReplyDeleteशुक्रिया विकेश जी ।
ReplyDeleteप्रिंयका जी जैसा कि आपने अपने लेख में लिखा है कि हिन्दी सिनेमा के गीतों के साहित्यिक महत्व पर आपने काम किया है। अगर आपके लिए संभव हो तो मैं उस शोध कार्य को देखना चाहूंगा। मैं शोध पत्रिका जनमीडिया से जुड़ा हूं। अगर शोध कार्य जनमीडिया के लिए उपयुक्त हुआ तो हम उसे प्रकाशित करने की भी कोशिश कर सकते है। जन मीडिया के बारे में जानने के लिए इस लिंक को देख सकते है। http://mediastudiesgroup.org.in/
ReplyDeleteसंजय कुमार बलौदिया