Tuesday, 4 November 2014

वह हँसी अब बेधने लगी है

मेरे कमरे की ट्यूब लाइट अचानक से बुझ गयी थी । कमरे में ट्यूबलाइट की रोशनी नहीं हो तो दिन में भी अंधेरा हो जाता है । रविवार के दिन हॉस्टल ऑफिस बंद रहता है । इसलिए मैं शिकायत दर्ज कराने के लिए हॉस्टल गेट पर तैनात सुरक्षा कर्मचारियों के पास गयी । शिकायत दर्ज करने वाली सिक्यूरिटी गार्ड सहयोगी स्वभाव की थी । आते-जाते हुए मैंने उन्हें कई बार देखा था । उनके चेहरे पर एक आकर्षक मासूमियत है जिस पर एक प्यारी मुस्कारहट स्थायी रूप से मौजूद रहती है । उस दिन शिकायत के बहाने उनसे बातचीत का मौका मिला था । उनके गले में लटके पहचान पत्र को पढ़ते हुए मैं सिक्यूरिटी कम्पनी का नाम बुदबुदायी । वो बोली- हाँ । इसी के तहत हम लोग यहाँ नौकरी कर रहे हैं, लेकिन कुछ दिन से बहुत परेशान हैं क्योंकि अभी कॉन्ट्रैक्ट बदलने वाला है और एक नयी कंपनी आ रही है । हम सब की छँटनी हो जाएगी । हम लोग अस्थायी नौकरी पर हैं और वह नयी कंपनी उन्हीं लोगों की भर्ती करेगी जो ज्यादा भाषाएँ जानते होंगे । बड़े अधिकारी दिलासा दे रहे हैं कि चिंता मत करो तुम्हें दुबारा भर्ती कर लिया जायेगा । चिंता तो फिर भी है ही, न जाने क्या होगा ! अभी मेरे बेटे को नौकरी लगने में छह-सात महीने लग जायेंगे । उसने इंजीनियरिंग की पढाई की है। छोटा बेटा अभी एम.सी.ए. कर रहा है । मेरे बेटे की नौकरी लग जाये फिर तो मैं आराम से रह सकती हूँ, नौकरी करने की जरुरत नहीं । लेकिन अभी हालात ऐसे नहीं कि मैं नौकरी के बिना रह सकूँ इसलिए चिंता हो रही है कि कहीं हमें निकाल नए लोगों को भर्ती कर लिया, तो क्या होगा !!” 
मैंने उन्हें उनके बारे में और ज्यादा बताने का आग्रह किया । वो बिना टाल मटोल तैयार हो गयीं । वो मूल रूप से उत्तर प्रदेश की हैं । उन्होंने बताया कि वे यादव हैं । उनका ससुराल कर्नाटक में है । उनके ससुराल वालों का संयुक्त परिवार है । उन लोगो की बड़ी जोत की खेती है और अपना चावल मिल भी है । पाँच छह वर्ष पहले उनके पति किसी दुर्घटना के शिकार हो गए थे और उनके दोनों हाथों का ऑपरेशन करना पड़ा जिसके चलते वे बिस्तर पर आ गए और उनका मिल में जाना बंद हो गया । इसके बाद बाकी भाइओं ने षड़यंत्र रच कर उन्हें मिल के मालिकाना हक़ से वंचित कर दिया ।  ऐसे हालात में वो अपने दो बेटों और पति के साथ अपने मायके हैदराबाद आ गयीं । लेकिन मायके में भी कितने दिन रह सकती थीं, अत: उन्होंने खुद के लिए काम तलाशना शुरू किया । उन्होंने बताया कि वे ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हैं उन्होंने बारहवीं तक की पढाई की है । एक दिन अखबार में एक विज्ञापन पढ़ कर वे एच.डी.एफ.सी बैंक में महिला सिक्यूरिटी गार्ड में भर्ती के लिए इंटरव्यू देने गयीं । उनका चयन हो गया । उन्होंने बताया कि तब तक वे ठीक से सड़क पार करना, फ़ोन करना वगैरह भी नहीं जानती थीं । ससुराल में पैंतालीस लोगों का परिवार था । औरतों को खाना बनाने और घर के बाकी कामकाज से ही फुर्सत नहीं मिल पाती थी । पेट पर आन पड़ी, बच्चों के भविष्य की चिंता हुई तो धीरे-धीरे सब सीख गयीं । तीन साल बैंक में नौकरी की और अब पिछले एक साल से यहाँ हैदराबाद विश्विद्यालय के महिला छात्रावास में सिक्यूरिटी गार्ड की नौकरी कर रही हैं । 
मैंने उनसे पूछा- आप लोगों को छुट्टी किस दिन होती है ?” उन्होंने बताया-हमारी छुट्टी कभी नहीं होती । रोज बारह घंटे की ड्यूटी है जो हर हफ्ते बदलती है । एक हफ्ता डे ड्यूटी और दूसरे हफ्ते नाइट ड्यूटी । कल रात ही मेरी नाइट ड्यूटी खत्म हुई और आज से डे ड्यूटी शुरू ।
यानी पिछली रात से वो यहीं थीं । बारह घंटे रात के और बारह घंटे दिन के यानी कुल मिलकर लगातार चौबीस घंटे की ड्यूटी पर वे तैनाथ थीं !! उन्होंने बताया कि चूँकि वे लोग अस्थायी नौकरी पर हैं इसलिए छुट्टी लेने पर पाँच सौ रूपए तनख्वाह से काट लिए जाते हैं । हफ्ते में घर के काम-काज, शॉपिंग, तबीअत वगैरह के लिए कम से कम एक छुट्टी हो ही जाती है । इस तरह महीने के अंत में कम से कम दो हजार रुपए तनख्वाह से कटना तय होता है । मैंने पूछा- आपकी तनख्वाह कितनी है ?” ‘चौदह हजार है, कट कर साढ़े ग्यारह- बारह हजार तक मिल जाता है । उन्होंने बताया- यह ठीक ही है, वर्ना कई जगह तो सात-आठ हज़ार ही मिलता है, हाँ लेकिन ड्यूटी भी आठ घंटे की ही होती है । उन्होंने बताया कि उनकी कोई बेटी नहीं है इसलिए घर का सारा काम भी उन्हें खुद ही करना पड़ता है । बारह घंटे की ड्यूटी के अलावा दो घंटे आने जाने में यानी चौदह घंटे यूँ ही खप जाते हैं । बाकी के घंटों में घर के काम निपटाने के बाद सोने के लिए अधिक से अधिक चार घंटे ही मिलते हैं । सुबह चार बजे उठकर दिनभर का खाना बनाना, घर साफ़ करना सब उनके ही जिम्मे होता है । उन्होंने फिर दोहराया –बेटों की नौकरी लग जाए फिर आराम होगा । वो बताने लगीं कि उनके पति की तबियत में भी अब काफी सुधार हुआ है । पति की पढ़ाई बहुत कम हुई है । बचपन में माँ-बाप के लाड़- प्यार ने बिगाड़ दिया और पढ़ाई नहीं हो सकी । किसी तरह एक मैरिज ब्यूरो में असिस्टेंट की नौकरी मिल गयी है । वे भी चार-पाँच हज़ार कमा लेते हैं । अब स्थिति थोड़ी ठीक हो रही है । ये सब कहते हुए उनके चेहरे की चमक बढ़ने लगी थी । विपत्ति के दिनों में एक साथ माँ, पिता, पत्नी और पति की भूमिका निभाने वाली उस महिला के आत्मसंतोष को महसूस किया जा सकता था । वो हंसकर बोलीं- ‘जब सब सोचने लगती हूँ तो बहुत दुःख होता है । बहुत मुसीबतें उठाई हैं । ये तो मैंने आपको शार्ट में अपनी कहानी सुना दी लेकिन बहुत बड़ी और एक दम फ़िल्मी कहानी है मेरी, जिसपर तेलुगु की एक मेगा मूवी बन सकती है’ । उन्होंने ठहाका लगाया । मैंने कहा – परिस्थितियों ने आपको मज़बूत बना दिया, आप घर की चहारदीवारी से निकल कर कितना कुछ जान समझ रही हैं और सबसे बड़ी बात कि आत्मनिर्भर हैं, कमा रही हैं । बेहद खुश होकर वो बोलीं –हाँ ये बात तो है वर्ना घर में लोगों का खाना बनाते हुए ही ज़िन्दगी निकल जाती । अब इन चार सालों में तो मैंने बहुत कुछ जाना समझा और  सीखा है । अपने हाथ में पैसा रहता है । किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ता । सब खुद ही मैनेज करती हूँ ।  छोटे बेटे को लैपटॉप की जरूरत है फिलहाल उसी के लिए पैसा बचा-बचा कर जोड़ रही हूँ ।

उनकी आप बीती को सुनने के क्रम में और बाद तक मेरे मन में बहुत कुछ चलता रहा । असहाय होने पर जिन्हें हमारी सहायता करनी चाहिए, वे किस तरह हमें अन्याय के असहनीय धक्के लगाकर घर से बाहर निकाल देते हैं । आखिर हम किस पर भरोसा करें ? अपने जिन बेटों की नौकरी कर लेने के बाद वे अपने लिए सुख के दिनों की कल्पना कर रही हैं, क्या वही बेटे माँ की भावनाओं की कद्र कर सकेंगे ? क्या तब वे आर्थिक अधिकार उनके पास रह जायेंगे, जिसके कारण वे आत्मविश्वास से भरी रहती हैं ? 
गरिमामय स्थायी नौकरियों का तो जैसे अकाल पड़ गया है । निजी कम्पनियाँ किन घोर अमानवीय परिस्थितियों में नौकरी करवाती हैं, उसे इस सिक्यूरिटी गार्ड की बिना अवकाश रोज बारह घंटे और सप्ताह में एक दिन चौबीस घंटे की ड्यूटी करने की मजबूरी से समझा जा सकता है । सरकार और मजदूर हितों की बात करने वाले संगठन क्या आँखें मूंदे बैठे हैं ? दरअसल हम सब अमानवीय परिस्थितियों के आदि हो गये हैं । अब जब भी मैं उधर से गुजरती हूँ । वो मुझे देखकर थोड़ा हँसती हैं या मुस्करा देती हैं । वह हँसी अब मुझे बेधने लगी है । मुझे लगने लगा है कि वह खुद्दार औरत कम से कम आनन्द में तो नहीं हँस रही है । लगता है जैसे वो हम पर हँसा करती हैं । हम सब पर, जिन्होंने अपने आस-पास की विसंगतियों से ऩजरें फेर ली हैं और एक बदतर दुनिया की खूबसूरती पर रीझ कर डिस्को की धुनों पर नाचा करते हैं । 



 # Security Guard in UOH, HCU, University of Hyderabad, Work Hours, Contract basis jobs, Difficulties of working women

2 comments:

  1. 'जनसत्ता' अख़बार में प्रकाशित आपके आलेख से होता हुआ, ब्लॉग तक पहुंचा हूं। लेख में निजी क्षेत्र की नौकरियों की विसंगतियों की तरफ बखूबी ध्यानाकर्षित किया गया है और यह भी कि परिस्थितिवश घर की चाहरदिवारी से बाहर निकली महिला, किस तरह आत्मनिर्भर बनने के साथ ही आर्थिक मामलों में सार्थक हस्तक्षेप करने लगती है। राजनैतिक स्तर पर ' नौकरियों की संख्या' की चर्चा की जाती है,जिस ओर आपने ध्यान दिलाया है, उस स्तर और अमानवीय परिस्थितियों पर चर्चा कम ही की जाती है।

    आगे इस चिठ्ठे पर निरंतर आने का प्रयास रहेगा।यहां नया लेख प्रकाशित होने पर मेल या अन्य किसी तरह से रिमांडर की सुविधा हो तो बेहतर रहेगा।

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    1. प्रतिक्रिया के लिए बहुत शुक्रिया आशीष जी। मैंने आप के सुझाव के बाद अपने ब्लॉग को गूगल+ से जोड़ दिया है :)

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