ये
एम.ए के दिनों की बात है । तब तक मैं विद्रोही को नहीं जानती थी । एक दिन छात्र
संगठन ‘आइसा’ द्वारा विद्रोही पर बनी डाक्यूमेंट्री दिखाई
गयी थी न केवल डाक्यूमेंट्री दिखाई गयी थी बल्कि विद्रोही को भी बुलाया गया था ।
वे आये उनके साथ उनके सामने हम लोगों ने उन पर बनी डाक्यूमेंट्री देखी ।
यही
वह दिन था जब उनके बारे में पहली बार जाना, उन्हें पहली
बार देखा, और पहली बार सुना । डाक्यूमेंट्री के बाद उनका
भाषण हुआ और फिर चला उनसे कवितायें सुनने का दौर। उन्होंने अपनी बहुत सी कवितायें
सुनाई । उनकी सुनाई सभी कवितायें मुझे बहुत अच्छी लगीं। उनकी कविताओं का मिजाज़
एकदम अलग तरह का है । उनकी कविताओं से भी अधिक उनका उन कविताओं को सुनाने का अंदाज़
पसंद आया । उनकी कविताओं को शायद ही कोई उनसे बेहतर तरीके से कभी पढ़ पाए । उनको
सुनना बेहद उर्जा देने वाला था ।
कार्यक्रम
के अंत में उनका काव्यसंग्रह ‘नयी खेती’ मैंने ख़रीदा और उनपर उनके हस्ताक्षर भी लिए । उनसे हस्ताक्षर लेना भी मेरे
जीवन का अपनी तरह का ऐसा पहला अनुभव था । आज उनके निधन की दुखद सूचना मिली, तो वह
दिन फिर से याद आ रहा है । उनकी कवितायें आज भी दिल-दिमाग को झकझोरती हैं और हमेशा
झकझोरती रहेंगी !
“इतिहास मे पहली स्त्री हत्या
उसके बेटे ने अपने बाप के कहने पर की
जमदग्नि
ने कहा कि
ओ परशुराम मैं तुमसे कहता हूं,
कि
अपनी माँ का वध करो और
परशुराम ने कर दिया
इस
तरह से पुत्र पिता का हुआ
और पितृ सत्ता आयी। ”
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उनकी स्मृतियों को
सलाम !
#RamashankarVidrohi #NayiKheti #AISA #8December2015
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