Tuesday, 8 December 2015

विद्रोही की स्मृतियों को सलाम

ये एम.ए के दिनों की बात है । तब तक मैं विद्रोही को नहीं जानती थी । एक दिन छात्र संगठन आइसाद्वारा विद्रोही पर बनी डाक्यूमेंट्री दिखाई गयी थी न केवल डाक्यूमेंट्री दिखाई गयी थी बल्कि विद्रोही को भी बुलाया गया था । वे आये उनके साथ उनके सामने हम लोगों ने उन पर बनी डाक्यूमेंट्री देखी ।
यही वह दिन था जब उनके बारे में पहली बार जाना, उन्हें पहली बार देखा, और पहली बार सुना । डाक्यूमेंट्री के बाद उनका भाषण हुआ और फिर चला उनसे कवितायें सुनने का दौर। उन्होंने अपनी बहुत सी कवितायें सुनाई । उनकी सुनाई सभी कवितायें मुझे बहुत अच्छी लगीं। उनकी कविताओं का मिजाज़ एकदम अलग तरह का है । उनकी कविताओं से भी अधिक उनका उन कविताओं को सुनाने का अंदाज़ पसंद आया । उनकी कविताओं को शायद ही कोई उनसे बेहतर तरीके से कभी पढ़ पाए । उनको सुनना बेहद उर्जा देने वाला था । 
कार्यक्रम के अंत में उनका काव्यसंग्रह नयी खेतीमैंने ख़रीदा और उनपर उनके हस्ताक्षर भी लिए । उनसे हस्ताक्षर लेना भी मेरे जीवन का अपनी तरह का ऐसा पहला अनुभव था । आज उनके निधन की दुखद सूचना मिली, तो वह दिन फिर से याद आ रहा है । उनकी कवितायें आज भी दिल-दिमाग को झकझोरती हैं और हमेशा झकझोरती रहेंगी !
इतिहास मे पहली स्त्री हत्या 
 उसके बेटे ने अपने बाप के कहने पर की 
 जमदग्नि ने कहा कि 
 ओ परशुराम मैं तुमसे कहता हूं,
 कि अपनी माँ का वध करो और 
 परशुराम ने कर दिया
                                              इस तरह से पुत्र पिता का हुआ 
                                              और पितृ सत्ता आयी


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उनकी स्मृतियों को सलाम !


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