
अभी आ रही खबरों से
पता चला कि रमणिका गुप्ता नहीं रहीं। रमणिका जी ने जिस तरह का जीवन जीया वह बने
बनाए खांचे का जीवन नहीं था। वे एक बेहद मजबूत एक्टिविस्ट और नेता थीं, जिन्होंने वंचितों और मज़दूरों के हक में आवाज़ उठाई और लगातार संघर्ष
किया। झारखंड के कोयला खादान मजदूरों और आदिवासियों के हकों के लिए किये गए उनके
काम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
रमणिका
जी प्रखर लेखिका भी थीं और हिन्दी में 'युद्धरत आम
आदमी' पत्रिका का लम्बे अरसे से संपादन करती आ रही थीं।
रमणिका गुप्ता की मातृभाषा पंजाबी थी इसीलिए उन्होंने इस भाषा के शब्द 'आपहुदरी' को अपनी आत्मकथा का शीर्षक बनाया। आपहुदरी
का अर्थ होता है 'अपने मन की करने वाली'। रमणिका जी ने इस शब्द के माध्यम से खुद को सही ही परिभाषित किया है।
चूंकि वे स्वतंत्र प्रकृति की महिला थीं और निर्भीक थीं, इसलिए
जैसा कि होता है, उनके ऊपर खूब कीचड़ भी उछाला गया लेकिन
जिसने ठान लिया हो उसे इन सब चीज़ों से फर्क नहीं पड़ता! उन्हें अलविदा और
श्रद्धांजलि।
No comments:
Post a Comment