मनोहर पर्रिकर लम्बे समय से बीमार थे। उनकी
बीमारी जितनी गंभीर थी, उस हिसाब से उन्हें लगातार
गहन चिकित्सा और पूरे आराम की ज़रूरत थी, लेकिन हो यह रहा था
कि नाक में नली लगाकर भी वे सार्वजनिक कार्यक्रमों में भाग ले रहे थे। मनोहर
पर्रिकर चूँकि सादगी भरा जीवन जीते थे, ईमानदार थे, कर्तव्यनिष्ठ थे इसलिए भारी अस्वस्थता में भी उन्हें काम करने की फ़िक्र थी
और वे डॉक्टरी सलाह को दरकिनार कर लगातार सक्रियता बनाये हुए थे, यह सोचना सरासर बेमानी है। मेरे ख़याल से उनपर लगतार सक्रिय दिखने का भारी
दबाव था। गोवा विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बहुमत नहीं मिला था लेकिन सत्ता
बीजेपी की हो, इसे मैनेज करने के लिए पार्टी ने उन्हें
रक्षामंत्री के पद से मुक्त कर, मुख्यमंत्री का पद संभालने
के लिए गोवा भेज दिया। सख्त बीमारी की हालत में भी काम करना अमानवीय है लेकिन गोवा
में अपनी साख बचाने के लिए पार्टी उनका भरपूर दोहन करती रही। राफेल डील वाले
मुद्दे का तनाव भी उन्हें अंत अंत तक झेलना पड़ा। कुल मिलाकर असमय एक ऐसे नेता का
देहान्त हो गया जिसके बारे में अमूमन लोगों की राय अच्छी थी। राजनीति ने तो उन्हें
चैन लेने नहीं दिया, प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शान्ति
मिले। श्रद्धांजलि!
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