ईस्टर के दिन
श्रीलंका में आतंकवादियों ने चर्च और होटलों को निशाना बनाते हुए सिलसिलेवार
आत्मघाती बम हमले किए। 300 के लगभग निहत्थे-निर्दोष लोग मारे गए और सैंकड़ों अन्य
लोग गंभीर रूप से घायल हुए। इनमें सभी उम्र के लोग शामिल थे। इनमें से अधिकांश लोग
प्रार्थना के लिए आए थे, या सद्भावना से उत्सव मनाने
के लिए इकट्ठे हुए थे। शुरूआती जांच में यह आशंका जताई जा रही है कि इन हमलों को
एक इस्लामिक आतंकी संगठन ने अंजाम दिया है।
कितना
बर्बर और कितना कायरना कृत्य है ये! इसका हासिल क्या होगा? निर्दोष-निहत्थे नागरिकों को मारकर ऐसे संगठन अपने होने का सिर्फ और सिर्फ
अहसास कराते रह सकते हैं, इसके अलावा इनका कोई न्यायसंगत
लक्ष्य नहीं है, और यदि कोई पागलपन भरा लक्ष्य है भी तो वो
कभी हासिल नहीं होने वाला। यदि इस तरह के काम किसी 'जन्नत'
की चाह में और 'उनहत्तर कुंवारी रूहों'
को भोगने की लालसा में किए जा रहे हों तो उस जन्नत का तो किसी को
नहीं पता लेकिन उन जहन्नुमों में आग लगे, जहां ऐसी लालसाएँ
जगा-जगा कर इस तरह के 'जिहादी' तैयार
किए जाते हैं!!
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