Saturday, 27 April 2019

पेप्सिको वालों की बपौती नहीं है 'आलू'

पेप्सिको ने एक खास किस्म (FC5) के आलू की खेती करने पर गुजरात के चार किसानों पर करोड़ों रूपये के हर्जाने का मुकद्दमा दायर किया है। पेप्सिको का कहना है कि इस खास किस्म के आलू को उसने रजिस्टर्ड करवा रखा है, और उससे अनुमति लिए बिना कोई इसे नहीं उगा सकता। लेकिन पेप्सिको इंडिया ने जो अपनी आंतरिक इच्छा ज़ाहिर की है वो ये है कि यदि ये किसान उससे एग्रीमेंट करके इस किस्म के आलू उगाएं और फिर उन्हें ही बेच दें तो वे अपना मुकद्दमा वापस ले लेंगे। किसानों का पक्ष है कि उन्हें यदि पता होता कि इस किस्म के आलू पर किसी का पेटेंट है, तो वो इसकी खेती कभी नहीं करते। लेकिन इसके साथ ही इन किसानों ने ये भी कहा है कि पेप्सिको ने उनसे पहले भी संपर्क किया था और ये कहा था कि वे उन्हें आलू बेचें, लेकिन वे इतनी कम दर देने को तैयार हैं, जो किसानों को मुनासिब नहीं लगता।
मैं अपनी छोटी सी बुद्धि से जो समझ पा रही हूं, वो ये है कि जिस तरह से अंग्रेज किसानों से नील की खेती जबरदस्ती करवाया करते थे, और फिर उससे पैसा बनाते थे, वास्तव में पेप्सिको भी कुछ वैसा ही चाह रही है।
पेप्सिको के पोटेटो चिप्स की खपत भारतीय बाज़ारों में लगातार बढ़ रही है और इसलिए अधिक उत्पादन और अधिक मुनाफे के लिए उनकी बड़ी चाहत है कि उन्हें सस्ती दरों पर आलू मुहैया कराने वाले एक तरह से बंधुआ किसानों की फौज मिल जाए।
सुनो पेप्सिको वालों, बेहतर यह है कि अपने पोटेटो चिप्स और कोक की दुकान समेटो और दफा हो जाओ। यहां के किसान तुम्हारे गुलाम नहीं हैं! वे आलू भी सदियों से उगा रहे हैं और ऑर्गेनिक पोटेटो चिप्स बनाने की तकनीक भी उनके पास सदियों से है। एक तो तुम किसानों का हक मार रहे हो, तुर्रा यह कि उन्हीं को चोर बताकर, उन्हीं से सीनाज़ोरी कर रहे हो, ये सब नाकाबिले बर्दाश्त है!

[नोट - विडंबना यह है कि नील की खेती से किसानों को मुक्त कराने वाले गांधी के गुजरात के किसानों के साथ यह सब हो रहा है और 56 इंच का सीने रखने का दावा करने वाले और देश के किसानों की उदारता का बखान करने वाले हमारे प्रधानमंत्री भी वहीं के हैं।]

No comments:

Post a Comment